बिलासपुर: शहर में आज सुबह से ही सुहागिनों ने व्रत रख वट सावित्री की पूजा (Worship of Vat Savitri) करते हुए पति की दीर्घायु की कामना (wishing husband long life) की. पूजा की तैयारियों को लेकर शहर की महिलाएं बाजारों में बुधवार से ही खरीदारी में व्यस्त रही. आज सुबह से ही शहर के अलग-अलग जगहों पर वट वृक्ष की पूजा करते हुए महिलाओं को देखा गया.
हिंदू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) बेहद खास और महत्वपूर्ण होता है. इसे सुहागिन महिलायें अपने अखंड सौभाग्य और पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं. यह व्रत हर साल ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन रखा जाता है. वट सावित्री व्रत अखंड सौभाग्य की कामना और संतान प्राप्ति की दृष्टि से भी बहुत ही शुभ फलदायी होता है.
इस बार वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) की पूजन सामग्री में सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां, बांस का पंखा, लाल कलावा, धूप-दीप, घी, फल-फूल, रोली, सुहाग का सामान, पूडियां, चना, बरगद का फल, जल से भरा कलश आदि शामिल है.
वट सावित्री की पूजा में चना सबसे महत्वपूर्ण
वट वृक्ष की पूजा करने पहुंची सीमा प्रसाद ने बताया कि वट सावित्री का व्रत पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है. जिसकी तैयारी वे बुधवार से ही कर रहे थे. इसमें सबसे महत्वपूर्ण चीज चना है. इसके अलावा सिंगार का सामान, फल-फूल, सिंदूर जरूरी है. वट यानी बरगद के पेड़ की पूजा के बाद उसमें 108 बार फेरे लगाए जाते हैं.
व्रत की ये है पौराणिक महत्ता
पंडितों के अनुसार वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Vrat) की पौराणिक महत्ता है. क्योंकि पतिव्रता सावित्री (pativrata savitri) ने इसी तिथि पर अल्प आयु पति सत्यवान की दीर्घायु कामना के लिए बरगद वृक्ष के नीचे व्रत किया था. सत्यवान की मृत्यु का समय आने पर यमराज उन्हें ले जाने के लिए पहुंचे तो सावित्री भी यमराज के साथ पतिव्रत प्रभाव से आकाश मार्ग से उनके साथ चलने लगी. तब यमराज ने सावित्री की आराधना को देखते हुए सत्यवान को दीर्घायु होने का आशीर्वाद देकर लौटाया था. क्योंकि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे अटल सुहाग के लिए पूजा की थी.
Vat Savitri Vrat: जानें वट सावित्री व्रत की पूजा विधि, मुहूर्त और कथा