बिलासपुर: चकरभाठा एयरपोर्ट को बिलासा एयरपोर्ट नाम दिए जाने की खबर खूब सुर्खियां बटोर रही है. अचानक "बिलासा" शब्द की चर्चा तेज हो गई है. ETV भारत वीरांगना बिलासा की कहानी से रू-ब-रू करवा रहा है. बिलासपुर शहर का नाम भी वीरांगना बिलासा के नाम पर रखा गया है. ऐतिहासिक तथ्यों से मिली जानकारी के मुताबिक सदियों पहले परसूराम और बैशाखा बाई के घर बिलासा का जन्म हुआ था. बचपन से ही बिलासा में विलक्षण गुण दिखने लगे थे. बिलासा धर्म कर्म के कार्य के अलावा घरेलू कामों और शौर्य कला में निपुण थी. बिलासा कुश्ती, भाला, तलवारबाजी और नौकायन में भी पूर्ण पारंगत थी. बिलासा एक निडर युवती थी.
कहानी छत्तीसगढ़ की उस वीरांगना की जिनसे है बिलासपुर की पहचान गजेटियर में मिलता है उल्लेख
बिलासपुर का नाम केंवटिन बिलासा के नाम पर रखा गया है. इसका जिक्र 1902 के गजेटियर में भी किया गया है. गजेटियर के एक अंश में 350 साल पहले एक मछुआरन बिलासा के नाम पर इस शहर के नामकरण होने की बात कही गई है. बिलासपुर को बिलासा नाम की एक केंवटिन के नाम पर रखा गया है. इस बात का जिक्र भूगोल की पुस्तकों में भी देखा गया है. जानकारों की मानें तो देवार लोकगीतों में भी बिलासा के जीवन का वर्णन हुआ है. बिलासा जहां रहती थी उस जगह बिलासपुर के पचरीघाट के रूप में जाना जाता है. पचरीघाट में ही बिलासा की समाधि भी बनी हुई है. बिलासा को लोग देवी स्वरूप पूजते भी हैं. लोक साहित्यों में बिलासा के कृतित्व का जिक्र किया गया है. जानकार बताते हैं कि बिलासा एक मजबूत इरादों वाली और प्रगतिशील मानसिकता वाली महिला थी. बिलासा ने कुरितियों और रूढ़िवादी मानसिकता पर भी करारा प्रहार किया था.
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जानवरों से करती थी मुकाबला
उन दिनों बिलासपुर की जीवनदायिनी अरपा नदी के किनारे वन थे. नदी के आसपास वन्यजीवों का बसेरा भी रहता था. कहा जाता है कि उन दिनों महिलाओं को सिर्फ घर तक सीमित रखा जाता था, लेकिन बिलासा उन दिनों भी वीरता का परिचय देती थी. बिलासा जंगल की ओर कूच करती थी. हिंसक जानवरों से बचने के लिए बिलासा निपुणता से पारंपरिक हथियारों का इस्तेमाल करती थी. इस तरह बिलासा ने एक साहसी युवती के रूप में पहचान हासिल कर ली थी.
इतिहास में बिलासा का जिक्र राजा की बचाई जान
ऐतिहासिक तथ्यों से मिली जानकारी के मुताबिक प्राचीनकाल में छत्तीसगढ़ की राजधानी रतनपुर हुआ करती थी. उन दिनों कल्चुरी शासक राजवंश राजा कल्याण साय का शासन था. राजधानी दिल्ली में मुगल बादशाह जहांगीर सत्तासीन थे. उन दिनों वन पशुओं का शिकार करना राजा का प्रमुख शौक होता था. इसी शौक के कारण एक दिन राजा कल्याण साय अपने सैनिकों के साथ शिकार के लिए अरपा नदी के किनारे जंगल में पहुंचे. शिकार में मग्न एक वन्यजीव का पीछा करते-करते राजा घने जंगल में चले गए. उनके सैनिक पीछे छूट गए. राजा को अकेला देख वन्य जीवों उनपर हमला कर दिया. राजा जमीन पर गिर गए. बिलासा घोड़े की आवाज सुनकर जंगल की ओर भागी. उसने वन्यजीव का मुकाबला किया. बिलासा के पराक्रम की वजह से राजा जंगली जीवों के शिकार होने से बच गए.
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बिलासा का हुआ सम्मान
बिलासा के साहस से खुश होकर राजा कल्याण सेन ने बिलासा का सम्मान किया. राजा के आदेश पर बिलासा को सैनिक वेशभूषा में घोड़े पर सवार होकर रतनपुर बुलाया गया. बिलासा के इस रूप का वर्णन समय-समय पर कवियों ने अपने-अपने शब्दों में किया है. सम्मान स्वरूप राजा ने बिलासा को अरपा नदी के दोनों किनारे की जागीर सौंप दी थी. इस तरह बिलासा अपने शौर्य और पराक्रम की वजह से एक नेतृत्वकर्ता के रूप में उभर के सामने आईं. बिलासा के पराक्रम की धमक दिल्ली तक भी पहुंची थी.
दिल्ली में दिखाया शौर्य
तत्कालीन दिल्ली के शासक मुगल बादशाह जहांगीर ने रतनपुर के राजा को दिल्ली आमंत्रित किया. राजा कल्याण साय बिलासा और अपने पराक्रमी योद्धाओं के साथ दिल्ली पहुंचे. इस दौरान दिल्ली शासक के पराक्रमी योद्धाओं के साथ बिलासा का मुकाबला भी हुआ था. हर मुकाबले में बिलासा वीर साबित हुई. इस तरह बिलासा के पराक्रम की चर्चा दिल्ली तक पहुंच गई.
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बताया जाता है कि एक बाहरी शासक ने बिलासा की नगरी पर आक्रमण कर दिया था. लड़ाई के दौरान बिलासा के पति और प्रधान सेनापति बंशी वीरगति को प्राप्त हुए थे. यह जानकारी जब बिलासा को मिली तो बिलासा खुद शत्रुओं से लड़ने के लिए मैदान में आ गई, लेकिन शत्रु सैनिकों की संख्या अधिक होने के कारण बिलासा भी वीरगति को प्राप्त हुई. राजा कल्याण साय को इस बात की जब जानकारी हुई तो बहुत दुखी हुए. उन्होंने अपने बड़े फौज के साथ बिलासपुर का मोर्चा संभाला और फिर दुश्मन को खदेड़ दिया. इस तरह वीरांगना बिलासा के नाम पर बिलासपुर शहर अस्तित्व में आया. बिलासपुर के लोग आज भी वीरांगना बिलासा को किसी ना किसी रूप में याद करते हैं.