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बिलासपुर का शिवतराई बना तीरंदाजों का गांव - archers village in Bilaspur

बिलासपुर का शिवतराई गांव तीरंजादों से भरा हुआ (Shivtarai of Bilaspur became village of archers) है. इस गांव के रहवासी इतवारीराज ने यहां के लड़के-लड़कियों को तीरंदाजी का गुर सिखाया है. यहां के बच्चे राज्य ही नहीं बल्कि नेशनल लेबल पर भी जीत हासिल कर चुके (National level archers in Shivtarai Bilaspur) हैं.

archers village
तीरंदाजों का गांव

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Published : Jul 17, 2022, 9:21 PM IST

बिलासपुर:देश की राजधानी से तकरीबन एक हजार इक्यासी किलोमीटर दूर सुदूर अंचल में बसे आदिवासी बाहुल्य गांव शिवतराई अपने तीरंदाजी के लिए मशहूर (Shivtarai of Bilaspur became the village of archers) है. शिवतराई गांव में रहने वाले एक सीएफ के कांस्टेबल ने अपनी मेहनत के बदौलत 2004 से अब तक द्रोणाचार्य की भूमिका निभाते हुए सैकड़ों लड़के और लड़कियों को तीरंदाजी की ट्रेनिंग देकर इस गांव को चैम्पियन का गांव बना दिया (National level archers in Shivtarai Bilaspur) है.

बिलासपुर का शिवतराई बना तीरंदाजों का गांव

चैंपियन का गांव बना शिवतराई: शिवतराई गांव के लोगों को यह पता नहीं था कि उसके ही गांव के तेज दौड़ने वाले, तीरंदाज और कबड्डी जैसे खेल में माहिर एक शख्स द्रोणाचार्य की भूमिका इस गांव और राज्य के लिए निभाएगा. खेल के प्रति समर्पित इतवारीराज मध्यप्रदेश शासन काल में ग्रामीण और क्षेत्रीय टूर्नामेंट में हिस्सा लेते थे. जिसके बाद सन 1992 रायगढ़ में आयोजित क्षेत्रीय दौड़ प्रतियोगिता में पहला स्थान हासिल किया. तब से अब तक यह सिलसिला जारी रहा. काफी संघर्षो और मेहनत के बदौलत 16 अक्टूबर 1998 में उन्हें पुलिस की नौकरी मिली. जिसके बाद समाजिक सरोकार से लबरेज इतवारीराज गांव के और आस-पास के बच्चों को तीरंदाजी की ट्रेनिंग दे रहे हैं. इस दौरान उनके सैकड़ों स्टूडेंट राज्य व राष्ट्रीयस्तर पर मुकाबलों में भाग लिये. यही वजह है कि दूर-दराज के लोग अब शिवतराई गांव को चैम्पियन का गांव कहते हैं.

फिर शुरू हुई तीर-धनुष सीखने की कला:बता दें कि आदिवासी बाहुल्य इस इलाके में सालों पहले तीर-धनुष से शिकार किया जाता था. हालांकि बदलते दौर के साथ लोगों ने शिकार के साथ-साथ इस कला को भी छोड़ दिया. गांव के बच्चे भी पढ़ने-लिखने लग गए और पूर्वजों की इस परम्परा से धीरे-धीरे दूर होते चले गए. ऐसे में इतवारीराज ने बच्चों को अवसर देकर गांव की पुरानी परम्परा को नये तरिके से जोड़ने का काम किया. शुरुआती दौर में इतवारीराज ने सन 2004 में अपनी तनख्वाह से चार लड़के और लड़कियों को तीरंदाजी सिखाना शुरू किया. समय के साथ-साथ बच्चों के अच्छे प्रदर्शन को देखकर धीरे-धीरे इतवारी ने पूरे गांव के तकरीबन 250 से 300 बच्चे को तीरंदाजी सिखा दी. अब ये बच्चे देशभर में अपने तीरंदाजी के लिए पहचाने जाने लगे. इतवारी सिंह की मेहनत और बच्चों की लगन को देखकर सरकार ने भी उनकी मदद की. कुछ साल पहले सरकार की ओर से इस गांव में ट्रेनिंग सेंटर खोला गया और खेल से संबधित अलग-अलग सुविधाएं उपलब्ध कराई गई.

सैकड़ों बच्चों को मिल रहा प्रशिक्षण: बिलासपुर जिले के कोटा ब्लॉक से महज 17 किलोमीटर की दूरी पर बसा आदिवासी गांव शिवतराई तीरंदाज में राज्यस्तर पर 500 से अधिक व राष्ट्रीयस्तर पर 186 मेडल जीत चुका है. इतवारीराज के बेटे अभिलाष राज भी तीरंदाजी में माहिर हैं. कुल चार खिलाड़ियों को छत्तीसगढ़ में तीरंदाजी का सबसे बड़ा सम्मान प्रवीरचंद भंजदेव पुरस्कार भी मिल चुका है. इस अवॉर्ड को पाने वाला एक खिलाड़ी संतराम बैगा भी है. प्रदर्शन के आधार पर शासन ने संतराम को शिवतराई के स्कूल में भृत्य की नौकरी भी दी है. संतराम के अलावा भागवत पार्ते और खेम सिंह भी स्पोर्ट्स कोटे के आधार पर आर्मी में नौकरी कर रहे हैं. शिवतराई के ही अगहन सिंह भी राजा प्रवीरचंद भंजदेव पुरस्कार पा चुके हैं. फिलहाल शिवतराई स्कूल मैदान में मिनी, जूनियर और सीनियर वर्ग में बच्चे और बच्चियां प्रशिक्षण ले रहे हैं.

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तीरंदाजों से भरा गांव: इतवारीराज को यह विश्वास है कि आने वाले दिनों में शिवतराई के खिलाड़ियों का नाम निश्चित तौर पर दुनिया के बेहतरीन तीरंदाजों में गिना जाएगा. वे इसके लिए हर संभव प्रयास करने की बात कह रहें हैं. उनके इस समर्पण से लगता है कि महाभारत काल में एकलव्य गुरु द्रोण की तलाश में था, ताकि उसकी प्रतिभा में निखार आए. इतवारी ने खुद कई एकलव्य तलाश कर लिए ताकि वे उनके हुनर को सही दिशा की ओर रूख दे सकें. उनकी इच्छा है कि दुनिया के नक्शे में गांव शिवतराई का नाम हो और छत्तीसगढ़ का हर एक व्यक्ति इस पर गर्व करे.

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