बिलासपुर: इन दिनों मानव तस्करी के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं. बिलासपुर में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के द्वारा ट्रेनों के माध्यम से किए जा रहे मानव तस्करी के मामलों में आरपीएफ को लगातार सफलता मिल (Increase in human trafficking cases in Bilaspur) रही है. पिछले तीन सालों में दपुमरे के आरपीएफ ने ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मामलो में 538 बच्चों का रेस्क्यू कर तस्करों के चंगुल से छुड़ाकर उन्हें दोबारा समाज में जीने लायक बनाते हैं.
मानव तस्करी सबसे अधिक:भारत में मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी के बाद सबसे बड़े संगठित अपराध ह्यूमन ट्रैफिकिंग का है. इन अपराधों में रेलवे बड़ा माध्यम बनता जा रहा है. मानव तस्कर ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए रेलवे का जमकर उपयोग कर रहे हैं. साउथ ईस्ट सेंट्रल रेलवे ह्यूमन ट्रैफिकिंग को लेकर सबसे ज्यादा सेंसिटिव है. बीते 3 सालों में जून तक लगभग 538 से ज्यादा ऐसे बच्चे रेस्क्यू किए गए हैं, जिनमें बहला-फुसलाकर ले जाने और घर से भागे हुए बच्चे शामिल हैं.
मेट्रो सिटी में घरेलू नौकर बनाने को किया जा रहा मानव तस्करी: साउथ ईस्ट सेंट्रल रेलवे हावड़ा मुंबई मेन लाइन में है. लिहाजा ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए एसईसीआर को सबसे बड़ा सर्किट माना जाता है. महानगरों तक सीधे कनेक्टिविटी होने के कारण मानव तस्कर इस रूट का जमकर इस्तेमाल करते हैं. सबसे ज्यादा झारखंड, ओडीशा और छत्तीसगढ़ के तस्करों के लिए एसईसीआर ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए बड़ा माध्यम है. यहां केचमेंट एरिया से तस्कर ट्रैफिकिंग कर मासूमों को नॉर्थ में दिल्ली साइड या फिर वेस्ट में गुजरात और मुंबई ले जाते हैं. यहां या तो उन्हें गलत कामों के लिए लगा दिया जाता है या फिर प्लेसमेंट कंपनियों के हवाले कर दिया जाता है. यहां से मेड व अन्य कामों के लिए इनका उपयोग किया जाता है.
3 साल में 538 बच्चों का रेस्क्यू:दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे की आरपीएफ टीम ने 3 सालों में लगभग 538 बच्चों का रेस्क्यू किया है. 3 वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो चाइल्ड लाइन नीड एंड केयर के तहत जोन से ऐसे 538 बच्चों का रेस्क्यू किया गया है, जिन्हें बहला-फुसलाकर काम के बहाने मेट्रो सिटी ले जाया जा रहा था. इन्हीं आंकड़ों में वह बच्चे भी शामिल हैं, जो घर से किसी कारणवश भाग जाते हैं और ट्रेनों के माध्यम से दूसरे शहर पहुंच जाते हैं. इसी तरह बिलासपुर मंडल में ही अकेले 2 वर्षों में 30 के करीब ह्यूमन ट्रैफिकिंग के केस डिटेक्ट किए गए हैं. जिनमें आईपीसी की धारा के तहत कार्रवाई करते हुए 40 से अधिक बच्चों का रेस्क्यू किया गया है. तमाम कार्रवाई के बाद भी जिस तरह ह्यूमन ट्रैफिकिंग के मामले बढ़ रहे हैं, यह देश के लिए चिंता का विषय है.
रेलवे पुलिस के लिए चुनौती बना ह्यूमन ट्रैफिकिंग: मानव तस्करी सड़क मार्ग के साथ ही रेल मार्ग से किया जा रहा है. यदि बात करें तो आरपीएफ के सामने पहले इस तरह के मामले नहीं आते थे, लेकिन रेलवे पुलिस के लिए अब ह्यूमन ट्रैफिकिंग नई चुनौती बनती जा रही है. हालांकि रेलवे पुलिस भी ह्यूमन ट्रैफिकिंग को लेकर पहले से ज्यादा अलर्ट है. बढ़ते मामलों को देखते हुए उन्हें डिटेक्ट करने के लिए आरपीएफ में स्पेशल एंटी ट्रैफिकिंग टीम बनाई गई है, जिन्हें स्पेशल ट्रेनिंग के साथ ट्रेनों में निगरानी का जिम्मा सौंपा गया है. इसके साथ ही नेशनल लेवल पर बचपन बचाओ आंदोलन के जरिए भी ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाकर रेलवे पुलिस को ट्रेंड किया जा रहा है. बावजूद इसके ट्रेनों के माध्यम से हो रहे ह्यूमन ट्रैफिकिंग रुक नहीं रहे हैं. हर माह मामले सामने आ रहे हैं, जिससे रेलवे पुलिस फोर्स के लिए ये बड़ी चुनौती बनती जा रही है.