बिलासपुर:कोरोना महामारी का एक साल बहुत डरावना रहा. किसी ने अपनों को खोया, तो कोई अपनों से बहुत दूर रहा. किसी ने लाख सावधानी बरती फिर भी इसकी चपेट में आ गया. कोई अकेले लड़ा और जीता, तो किसी के पूरे परिवार ने ये दु:ख झेला है. इन्हीं में से एक है शहर की रॉय फैमिली. परिवार के सभी सदस्यों ने ETV भारत से उस वक्त के एक्सपीरियंस शेयर किए हैं. वो अनुभव जो कभी डराते हैं, तो कभी हिम्मत से भर देते हैं.
माता-पिता दो बच्चों के साथ खुशी-खुशी लॉकडाउन का वक्त काट रहे थे. पिछले साल 12 अगस्त को पता चला कि रेलवे में काम करने वाले शुभांकर रॉय कोरोना की चपेट में आ गए हैं. उन्हें इलाज के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया. वे दुआ मांगते रहे कि उनकी पत्नी और बच्चे इस महामारी से बचे रहें लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था. उनका डर हकीकत में बदल गया. शुभांकर की पत्नी और दोनों बच्चियों की जांच हुई और जब रिपोर्ट आई तो सबके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. पूरा परिवार इस महामारी की चपेट में आ चुका था.
वो 22 कोरोना वॉरियर्स, जो जनसेवा में न्योछावर हो गए
बीमारी में बेटियों को संभाला
शुभांकर की पत्नी अनामिका शहर के सिम्स अस्पताल में स्टाफ नर्स हैं. कोरोना के पीक अवर में वो स्टडी लीव पर थी. पति के बाद दोनों बेटियों और उनकी खुद की रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद पहले तो वो थोड़ा डर गईं. लेकिन खुद को संभालते हुए अपनी और दोनों बेटियों की केयर में जुट गई. अनामिका बताती हैं कि उन्होंने होम आइसोलेशन के लिए शहर के CMHO से संपर्क किया. उन्हें मदद और होम आइसोलेशन की इजाजत मिल गई.
वीडियो कॉल पर करते थे बात