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एक हजार करोड़ के घोटाले की फिर होगी सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-HC करे सुनवाई

वर्ष 2014 में राज्य नि:शक्तजन स्रोत संस्थान के नाम पर एनजीओ का गठन हुआ था. आरोप है कि तत्कालीन मुख्य सचिव विवेक ढांड समेत आधा दर्जन आइएएस व रजपत्रित अधिकारी दिव्यांगों को लाभ पहुंचाने के नाम पर पर्दे के पीछे एनजीओ का संचालन कर रहे थे. प्रदेशभर में समाज कल्याण विभाग का एक सामानांतर दफ्तर चलाया जा रहा था. सरकारी कर्मचारियों की फर्जी नियुक्ति की गई थी.

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Published : Oct 8, 2021, 11:57 AM IST

Now the hearing will be held in the High Court
अब हाईकोर्ट में होगी सुनवाई

बिलासपुर :राज्य के पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड व आइएएस एमके राउत (Former Chief Secretary Vivek Dhand and IAS MK Raut) की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को वापस हाई कोर्ट भेज दिया है. साथ ही सुनवाई करने का आदेश भी जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट को दोनों पक्षों की सुनवाई करते हुए अपना निर्णय देने का निर्देश दिया है.

पूर्व मुख्य सचिव और आइएएस एमके राउत ने हाईकोर्ट के फैसले को दी थी चुनौती

पूर्व मुख्य सचिव और आइएएस एमके राउत ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट (Chhattisgarh High Court) के उस फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें हाई कोर्ट ने घोटाले में लिप्त एक दर्जन से अधिक आइएएस व राजपत्रित अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई को रिपोर्ट दर्ज करते हुए जांच के निर्देश दिये थे. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद सीबीआइ की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी. छत्तीसगढ़ राज्य नि:शक्तजन स्रोत संस्थान (Chhattisgarh State Institute of Disability Resources) में एक हजार करोड़ के घोटाले की जांच की मांग को लेकर कुंदन सिंह ठाकुर ने अपने वकील देवर्षि ठाकुर के जरिये छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में वर्ष 2017 में जनहित याचिका लगाई थी.

घोटाले में शामिल अफसरों के खिलाफ सीबीआइ को दिये थे जांच के निर्देश

राज्य नि:शक्तजन स्रोत संस्थान में करोड़ों की गड़बड़ी की जांच को लेकर हाई कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस अजय त्रिपाठी व जस्टिस प्रशांत मिश्रा की डिवीजन बेंच ने घोटाले में शामिल अफसरों के खिलाफ सीबीआइ को जांच के निर्देश दिए थे. सीबीआई जबलपुर मुख्यालय ने अज्ञात के खिलाफ जुर्म दर्ज कर जांच शुरू कर दी थी. इस बीच छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्य सचिव विवेक ढांड ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर कर हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी. प्रारंभिक सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के सीबीआई जांच के आदेश पर रोक लगा दी थी.

सरकारी कर्मचारियों की हुई थी फर्जी नियुक्ति
दरअसल वर्ष 2014 में राज्य नि:शक्तजन स्रोत संस्थान के नाम पर एनजीओ का गठन हुआ था. आरोप है कि तत्कालीन मुख्य सचिव विवेक ढांड समेत आधा दर्जन आइएएस व रजपत्रित अधिकारी दिव्यांगों को लाभ पहुंचाने के नाम पर पर्दे के पीछे एनजीओ का संचालन कर रहे थे. प्रदेशभर में समाज कल्याण विभाग का एक सामानांतर दफ्तर चलाया जा रहा था. सरकारी कर्मचारियों की फर्जी नियुक्ति की गई. साथ ही कागजों में लाखों रुपये हर माह वेतन भुगतान हो रहा था. संविदा कर्मचारी कुंदन सिंह ने नियमितीकरण के लिए जब समाज कल्याण विभाग में आवेदन लगाया तो यह बात सामने आई कि वह पांच साल से नियमित कर्मचारी के रूप में काम कर रहा है. उसका वेतन भी हर माह जारी हो रहा है.

दिव्यांगों के नाम पर किया गया था एक करोड़ का घोटाला

इसके बाद आरटीआई के माध्यम से जानकारी मिली कि दिव्यांगों के नाम पर एक हजार करोड़ का घोटाला किया गया है. समाज कल्याण विभाग के राज्य नि:शक्तजन स्रोत संस्थान फिजिकल रेफरल रिहेब्लिटेशन सेंटर में एक हजार करोड़ रुपये के घोटाले को उजागर करने वाले विभाग के संविदा कर्मचारी कुंदन सिंह ने अपने वकील देवर्षि ठाकुर के जरिए सुप्रीम कोर्ट में केविएट दायर किया था. दायर केविएट में कुंदन ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की थी कि घोटाले में फंसे आइएएस व पूर्व आइएएस अधिकारियों की एसएलपी (स्पेशल रिव्यू पिटीशन) पर सुनवाई के बाद किसी भी तरह का निर्णय लेने से पूर्व उनका पक्ष सुना जाए.
याचिकाकर्ता ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच के फैसले का भी अपने केविएट में हवाला दिया था. याचिका के अनुसार बीते 31 जनवरी को जस्टिस प्रशांत मिश्रा की अगुवाई वाली डिवीजन बेंच ने समाज कल्याण विभाग में एक हजार करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप में राज्य के सात आइएएस व राज्य सेवा संवर्ग के पांच अधिकारियों के खिलाफ सीबीआइ को सात दिनों के भीतर रिपोर्ट दर्ज करने के निर्देश दिए थे.

समाज कल्याण विभाग ने 150 से 200 करोड़ के घोटाले की बात स्वीकारी थी

डिवीजन बेंच ने सीबीआइ को समाज कल्याण विभाग सहित अन्य विभागों के वर्ष 2004 से 2018 के बीच सभी महत्वपूर्ण दस्तावेजों की जब्ती का भी फरमान जारी किया था. डिवीजन बेंच के निर्देश पर छग शासन के तत्कालीन मुख्य सचिव अजय सिंह ने पूरे मामले की जांच कराने के बाद अक्टूबर 2018 में कोर्ट के समक्ष रिपोर्ट पेश की थी. समाज कल्याण विभाग ने 150 से 200 करोड़ के घोटाले की बात स्वीकार की थी.

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