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SPECIAL: कोरोना का साइड इफेक्ट, परिवार नियोजन कार्यक्रम पर लगा ब्रेक!

कोरोना महामारी ने आम लोगों की जिंदगी के साथ राष्ट्रीय परिवार नियोजन कार्यक्रम को भी प्रभावित किया है. छत्तीसगढ़ में भी हालात जुदा नहीं हैं. बिलासपुर जिले में तो पिछले 9 महीने में एक भी नसबंदी ऑपरेशन नहीं हुआ.

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अप्रैल से अबतक नहीं हुआ एक भी नसबंदी ऑपरेशन

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Published : Dec 2, 2020, 10:08 PM IST

Updated : Dec 2, 2020, 10:47 PM IST

बिलासपुर: पिछले 9 महीने से भी ज्यादा समय से कोरोना महामारी का खतरा बरकरार है. कोरोना के कारण सरकार के महत्वाकांक्षी नसबंदी प्रोग्राम पर भी ग्रहण लग गया है. पूरे प्रदेश के साथ-साथ बिलासपुर जिले में भी इसका खासा असर देखने को मिल रहा है.

अप्रैल से अबतक नहीं हुआ एक भी नसबंदी ऑपरेशन

9 महीने में नहीं हुआ एक भी नसबंदी ऑपरेशन

अप्रैल 2020 से लेकर अबतक कोविड पीरियड में एक भी नसबंदी ऑपरेशन नहीं हुआ है. कोरोनाकाल ने बिलासपुर जिले में सबसे बड़ा नुकसान अगर किसी महत्वाकांक्षी योजना को पहुंचाया है तो वो है फैमिली प्लानिंग डिपार्टमेंट. बीते 2015 से लेकर अबतक जिले में कुल 8700 नसबंदी के ऑपरेशन हुए हैं जबकि कुल 60 हजार 550 का लक्ष्य तय था.

अप्रैल से अबतक नहीं हुआ एक भी नसबंदी ऑपरेशन

कोरोना ने लगाया ब्रेक

कोरोना पीरियड में जीरो नसबंदी ने परिवार नियोजन कार्यक्रम का पूरा गणित उलट दिया है. बीते 26 मार्च को बिलासपुर जिले में कोरोना का पहला पेशेंट डिटेक्ट हुआ था. बाद में यह आंकड़ा बढ़ता चला गया और कोरोना के भय के कारण नसबंदी प्रक्रिया को अतिआवश्यक सेवा न मानते हुए पूरे प्रदेश में इसे बंद कर दिया गया. परिवार नियोजन जैसे महत्वपूर्ण प्रोग्राम पर ब्रेक इस योजना के क्रियान्वयन के बाद से पहली बार हुआ है.

अप्रैल से अबतक नहीं हुआ एक भी नसबंदी ऑपरेशन

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साल 2015 से अबतक का आंकड़ा

सरकार की ओर से जारी ऑफिशियल आंकड़ों की बात करें तो

  • साल 2015-16 में कुल 482 नसबंदी ऑपरेशन
  • साल 2016-17 में 925 नसबंदी ऑपरेशन
  • साल 2017-18 में 2225 नसबंदी ऑपरेशन
  • साल 2018-19 में 2068 नसबंदी ऑपरेशन
  • साल 2019-20 में 3000 नसबंदी ऑपरेशन

लेकिन 2020 में आंकड़ा शून्य है. यह आंकड़ा बताता है कि 2019-20 में तय लक्ष्य के तकरीबन 25 प्रतिशत के साथ सर्वाधिक ऑपरेशन किये गए.

स्वास्थ्य अधिकारी का तर्क

स्वास्थ्य अधिकारी का तर्क है कि यह सब कोरोना के कारण ही हुआ है. कोरोना पीरियड में परिवार नियोजन से जुड़े तमाम अधिकारी और कर्मचारियों की ड्यूटी कोरोना के रोकथाम के लिए शिफ्ट कर दी गई. यह सेवा इमरजेंसी सेवा नहीं है. लिहाजा इस बीच परिवार नियोजन के प्रोग्राम पर ब्रेक लगाना उनकी मजबूरी थी.

ऑपरेशन कराने नहीं पहुंचे लोग

स्वास्थ्य अधिकारी कोरोना पीरियड में इन प्रोग्रामों को चलाने को एक रिस्क के रूप में भी देख रहे हैं. वरिष्ठ चिकित्सक की मानें तो कोरोना के कारण ऑपरेशन से पहले कोरोना जांच अनिवार्य है. इस कारण से यह प्रक्रिया और ज्यादा जटिल हो जाती है. वहीं नसबंदी के इच्छुक पुरुष और महिलाओं का रुझान भी इस बीच न के बराबर आया है.

अप्रैल से अबतक नहीं हुआ एक भी नसबंदी ऑपरेशन

स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी!

कोरोनाकाल ने जीवन के हर मोड़ पर लोगों को प्रभावित किया है. इस बीच स्वास्थ्य विभाग से जुड़े लोगों की जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ गई और अबतक के कोरोनाकाल में स्वास्थ्य विभाग ने अपनी जवाबदेही को बखूबी निभाया भी है. बावजूद इसके जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में बेहद ही महत्वपूर्ण फैमिली प्लानिंग को लेकर स्वास्थ्य विभाग का पूरी तरह से हाथ खड़ा करना भी समझ से परे है.

वैकल्पिक व्यवस्था नहीं?

बड़ा सवाल यह भी है कि शासन-प्रशासन ने इस अहम योजना के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की ? क्या शासन-प्रशासन के लिए जनसंख्या नियंत्रण प्रोग्राम वाकई कम महत्व का विषय है ?

Last Updated : Dec 2, 2020, 10:47 PM IST

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