बिलासपुर:आज वर्ल्ड नर्स डे है. सफेद लिबास में डॉक्टर और हेल्थ स्टाफ धरती के भगवान से कम नही है, ये बात शायद दुनिया ने पहले ही कभी महसूस की हो. कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए पुलिस सड़क पर है और इस महामारी से जान बचाने के लिए चिकित्सीय स्टाफ हॉस्पिटल में सब कुछ भुलाकर मानवता का सबसे बड़ा फर्ज अदा कर रहा है. कई बार इनके जीवन में ऐसा दिन आता है, जो वे ताउम्र नहीं भूल पाते. ऐसा ही दिन आया था नर्स शीला खटकर के जीवन में, जिसे वे आज भी नहीं भूल पाती हैं. जिसने 25 साल पहले अपनी सांस से एक नवजात को नई जिंदगी दी थी.
'आप गॉड मदर हो'
नर्सिंग सिस्टर के रूप में 25 वर्ष की सेवा पूरी कर चुकी शीला खटकर अपने करियर के शुरुआत के दिनों के बीच हुई एक प्रसव घटना को याद कर आज भी खुद पर गौरव महसूस करती हैं, जब जन्म लिए नवजात के पिता ने उनके पैर छूकर कहा कि-आप गॉड मदर हो.
ETV भारत से बांटा अनुभव
राज्य के सबसे बड़े मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय, सेंदरी में प्रभारी मेट्रेन के पद पर पदस्थ नर्स शीला खटकर ने ETV भारत से अपने अनुभव बांटे जब उन्होंने एक नवजात को अपनी सांस देकर उसके शरीर में नई जान लाई थी. नर्स शीला खटकर ने साल 1995 में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, वैकुंठपुर से नौकरी की शुरुआत की थी. 25 साल पहले आदिवासी अंचल में स्वास्थ्य सेवाएं उतनी बेहतर नहीं थी, जितनी आज हैं. उस दौरान एक जोखिम वाला डिलीवरी केस उनके अस्पताल पहुंचा, जिसमें प्रसव के समय बच्चा फंस गया था. सीनियर डॉक्टर्स ने ऑपरेशन किया लेकिन बच्चे को नियमित सांस नहीं मिली, जिसके बाद नर्स शीला खटकर ने तुरंत बच्चे को माउथ टू माउथ ऑक्सीजन दिया और बच्चे की जान में जान आ गई.