बिलासपुर: कोरोना संक्रमण के मद्देनजर देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान केंदा गांव में सालों से झोपड़ी बनाकर रह रहे आदिवासी परिवार सहित दर्जनों परिवारों के घरों को तोड़ दिया गया है. सरपंच और गांव के महिला समूह पर आदिवासियों के घरौंदे को तोड़ने का आरोप लगा है. फिलहाल घरों में रहने वाले दो दर्जन से ज्यादा परिवार अपने मासूम बच्चों के साथ पेड़ों के नीचे तंबू बनाकर रह रहे थे, लेकिन वन विभाग ने उन्हें वहां से खदेड़ दिया है. केंदा गांव के आदिवासियों ने आसरे की उम्मीद लगाए 70 किलोमीटर का सफर किया और बिलासपुर पहुंचकर कलेक्टर से गुहार लगाई.
आदिवासी परिवार का आशियाना टूटा तीस साल से झोपड़ी बनाकर रह रहे परिवार
रतनपुर क्षेत्र के केंदा जंगल में लगभग तीस साल से कई परिवार झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं. वहीं आए हुए लोगों से जानकारी मिली की शासन की योजना गौठान बनाने के चलते इन परिवारों से उनका आशियाना छीन लिया गया है. ऐसा नहीं की गौठान इन गरीबों की झोपड़ी को तोड़कर बनाना था, बल्कि गौठान के लिए अन्य जमीन प्रस्तावित है, लेकिन दबंगों और राजनीतिक लफड़े में न पड़कर सरपंच ने गौठान की जगह बदल दी.
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ग्रामीण पहुंचे कलेक्ट्रेट
इन आदिवासी परिवारों के मकान तोड़कर बेघर कर दिया गया है. इतना ही नहीं जब बेघर हुए परिवार पेड़ों के नीचे तंम्बू बनाकर रह रहे तो, वन विभाग ने उन्हें बिना कोई वैकल्पिक व्यवस्था के खदेड़ दिया. मामले में केंदा गांव से पीड़ित परिवार की महिलाएं अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर कलेक्टर से शिकायत करने पहुंची. इस दौरान कलेक्टर मीटिंग में थे, लिहाजा ग्रामीणों की मिलने की जिद थी. वहीं भूखे-प्यासे बिलासपुर पहुंचे लोगों को विश्व हिन्दू परिषद् और बजरंग दल के सदस्यों ने भोजन कराया.
कलेक्टर ने एसडीएम को लगाई फटकार
मीटिंग से निकलते ही कलेक्टर की गाड़ी को ग्रामीणों ने घेर लिया और अपनी आप बीती सुनाई. जिसपर कलेक्टर ने पीड़ितों के सामने एसडीएम को जमकर फटकार लगाई. वहीं ग्रामीण कलेक्टर से गांव के सरपंच, समूह और वन विभाग की कार्रवाई को लेकर शिकायत करते बताया की ऐसे समय में बिना नोटिस दिए उनकी झोपड़ियों को तोड़कर उन्हें बेघर और बेसहारा कर दिया है.