बिलासपुर:प्रदेश में मानसिक रोगियों को इलाज न मिल पाने और मानसिक चिकित्सालय में स्टाफ की कमी पर हुई सुनवाई में सवाल पूछे जाने पर राज्य शासन की ओर से जवाब प्रस्तुत नहीं किया गया है. लगातार जवाब न मिलने पर हाईकोर्ट ने इस मामले में अब 21 सितंबर को अगली सुनवाई तय कर दी है. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य शासन को जानकारी देने के निर्देश दिए थे.
यह भी पढ़ें:सांसद सरोज पांडे ने बालको के खिलाफ जांच की मांग की, राज्यसभा में उठाया मुद्दा
मनोचिकित्सक को लेकर हाईकोर्ट में सुनवाई: राज्य में मानसिक रोगियों के इलाज के लिए 2017 में बने अधिनियम के अनुसार प्रावधान किया गया है. सुविधा नहीं होने पर रायपुर के अधिवक्ता विशाल कोहली ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है. इस मामले में हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान भी लिया है. दोनों मामलों की एक साथ सुनवाई चल रही है. याचिका में बताया गया कि, डब्ल्यूएचओ के नियम अनुसार 10 हजार लोगों पर 1 मनोचिकित्सक होना चाहिए, जबकि राज्य में 8 लाख लोगों पर एक है. प्रावधान के अनुसार हर जिले में एक मानसिक स्वास्थ्य केंद्र और मनोचिकित्सक होना चाहिए. याचिका में यह भी बताया गया है कि प्रदेश के एकमात्र राज्य मानसिक चिकित्सालय सेंदरी के लिए 11 चिकित्सकों के पद स्वीकृत हैं, लेकिन उनमें से मात्र 3 पद पर ही सायकेट्रिस्ट नियुक्त हैं. इसके अलावा 1 इएनटी और 1 आर्थोपेडिक चिकित्सक की नियुक्ति कर दी गई है.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात को गंभीरता से लिया कि मनोचिकित्सक के पद ही नहीं भरे गए. कोर्ट ने प्रावधान अनुसार इलाज के लिए प्रदेश में की जा रही व्यवस्था और मानसिक चिकित्सालय में रिक्त पद भरने के लिए क्या किया जा रहा, राज्य शासन को बताने के निर्देश दिए थे. लेकिन जानकारी नहीं दी गई. याचिका में बताया गया है कि राज्य में मानसिक स्वास्थ्य से प्रभावित 78 फीसदी लोगों को उपचार नहीं मिल पा रहा है. 2017 में मानसिक स्वास्थ देख रेख अधिनियम बना था. इसमें मनोचिकित्सा के लिए राज्य सरकारों को अलग से बजट देने को कहा गया है.