बिलासपुर: बंदी प्रत्यक्षीकरण के मामले में बिलासपुर हाईकोर्ट में लगी याचिका में शुक्रवार को सुनवाई हुई. इस मामले में लगी याचिका में पति के द्वारा बेटी से मां को मिलने नहीं दिया जा रहा (habeas corpus case Bilaspur High Court verdict) है. मामले में सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है.
दरअसल, रायपुर की रहने वाली खुशबू जेठी की शादी साल 2011 में गुजरात के कच्छ में रहने वाले निशिर भावे जेठी से हुई थी. दोनों लगभग 5 साल एक साथ रहे. इन 5 सालों में इनको एक बेटी और एक बेटा हुआ. लेकिन दोनों के संबंध ज्यादा दिन तक नहीं टिक पाए. दोनों आपसी सहमति से 2016 में अलग हो गए. दोनों के अलग होने के दौरान बच्चों के पालन पोषण की बात उठी और दोनों मिलकर बच्चों को अपने-अपने पास रखने की बात करने लगे
पति ने धोखे से बेटी को दूसरे जगह भेज दिया
तब बीच का रास्ता निकालते हुए पति निशिर भावे जेठी रायपुर के पंजीयन एवं मुद्रांक विभाग के उप पंजीयक के पास गए और उप पंजीयक रुपाली बोस ने नोटरी के माध्यम से फैसला किया कि 6 वर्षीय बेटी पति के साथ रहेगी और 4 वर्षीय बेटा पत्नी के साथ रहेगा. फैसले में यह भी कहा गया कि दोनों 15-15 दिन में बेटी और बेटा से मिल सकते हैं. इस मामले में उप पंजीयक (पंजीयन एवं मुद्रांक) ने अपना सील लगाकर साइन किया और इसे नोटरी भी करवा दिया. कुछ दिन तो सब ठीक चला लेकिन बाद में पति निशिर भावे जेठी बच्ची को पत्नी से नहीं मिलने दिया और किसी दूसरे स्थान भेज दिया. जबकि पति निशिर रायपुर में ही रह रहा है और बेटी को दूसरे जगह भेज दिया. पति की हरकत से परेशान होकर खुशबू जेठी ने वकील काशीनाथ नंदे के माध्यम से हाईकोर्ट की शरण ली.