बिलासपुरः छत्तीसगढ़ (Chhattisgath) के बिलासपुर (Bilaspur) जिले से सटे मीडियम जू (Medium zoo) का दर्जा प्राप्त कर चुके कानन पेंडार जू (Kanan Pendar Zoo) में हिरणों की बढ़ती संख्या (Increasing number of deer) प्रबंधन के लिए मुसीबत (Management)बनती जा रही है. दरअसल, इनकी बढ़ती संख्या के कारण प्रबंधन को इनका चारा खिलाने में पसीना छूट रहा है, वहीं जू में जगह की भी किल्लत है.
कानन जू में जानवरों की बढ़ती आबादी ने बढ़ायी चिंता लगातार बढ़ रही हिरणों की संख्या
बता दें कि कानन पेंडारी मीडियम जू की मान्यता प्राप्त चिड़ियाघर है. यहां सीजेआई (CJI) के नियमों के अनुसार जंगली जानवर (Wild animals) को रखने और उनकी देखरेख के साथ ही प्रजनन की व्यवस्था (Breeding system) की जाती है. लेकिन इन दिनों हिरणों की बढ़ती संख्या (increasing number of deer) ने चिड़ियाघर प्रबंधन (zoo management) के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है. बताया जा रहा है कि हिरणों के लिए ओपन केज (open cage) की व्यवस्था की जाती है. जहां इन्हें चारा पानी दिया जाता है. ओपन केज को 12 जानवरों के रखने के हिसाब तैयार किया गया है हालांकि मौजूदा समय में इन ओपन केज में 30 से 50 जानवर रखे गए हैं.
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ये है जानवरों की संख्या
कानन जू में इस समय हिरणों की 13 प्रजातियां है और इनकी संख्या तकरीबन 3 सौ के आसपास है. इसी तरह भालुओं की संख्या 7 है, उन्हें एक ही ओपन केज में रखा गया है. जबकि एक केज में 2 भालू ही रखे जा सकते है. इधर, 4 तेंदुआ और 30 के करीब नील गए है. लायन 8, वाइट टाइगर 3, टाइगर 6, गौर 4 के अलावा चिड़ियों की गिनती ही नही. इसके अलावा यहां विदेशी जंगली जानवर भी मौजूद हैं, जैसे शुतुरमुर्ग, वाइट हिरण, हिप्पोपोटेमस,पेलिकन सहित कई पक्षी मौजूद है.बता दें कि कानन मिडियम जू में लगभग साढ़े 6 सौ जंगली जानवर और पक्षी है. इतनी बड़ी संख्या को संभालने में प्रबंधन का पसीना छूट रहा है. साथ ही इस परेशानी को चिड़ियाघर प्रबंधन किसी से बयां नहीं कर पा रहा है.
संचालक ने कहा कोई दिक्कत नहीं
इस विषय में कानन के संचालक डीएफओ विष्णुराज नायर (Kanan's Director DFO Vishnuraj Nair) ने बताया कि सीजेडआई के मिनी जू, मीडिया जू के अलग-अलग नियम होते है. उन्हें अभी कोई परेशानी नही है. कानन संचालक के जवाब भले ही कुछ बता नही पा रहे है. लेकिन जानवरो की संख्या अधिक होने की परेशानी का दर्द साफ झलकता नजर आ है.
यूं प्राप्त हुआ मीडियम जू का दर्जा
बता दें कि राज्य बनने से पहले चिड़ियाघर बहुत छोटा था और राज्य बनने के बाद कानन को 2005 में मिनी जू का दर्जा हासिल हुआ. इसके बाद 2020 में मीडियम जू का दर्जा प्राप्त हुआ. कानन पेंडारी जू में अचानकमार टाइगर रिजर्व, बिलासपुर वन मंडल, मुंगेली वन मंडल के अलावा गौरेला पेंड्रा मरवाही वन मंडल से जख्मी या भटके हुए जंगली जानवर लाए जाते हैं. इसके अलावा देश के अन्य चिड़िया घरों से एक्सचेंज में आने वाले जानवर अलग से यहां मौजूद हैं. इस समय कानन पेंडारी में जानवरों की संख्या काफी बढ़ गई है. हालांकि जंगली जानवरों को देखने के शौकीन लोग यहां रोजाना ही पहुंचते हैं.
वन विभाग की लापरवाही का है ये नतीजा
इधर, बिलासपुर के वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट प्राण चड्डा (Wildlife Expert Pran Chaddha) इस विषय में बताते हैं कि जू में हिरणों की बढ़ती संख्या मुसीबत तो है. लेकिन ये मुसीबत खुद वन विभाग की लापरवाही या फिर जानकारी नही होने की वजह से बढ़ रही है. समय-समय पर जू प्रबंधन हिरणों को जंगल मे छोड़ता तो है, लेकिन ये काम वन विभाग अपने कर्तव्य की अनुसार ही करता है, क्योकि जो जंगली हिरण रहते है वो जंगल मे रहने के आदि रहते है और शिकार होने से बचने के एक्सपर्ट होते है. उनको भागने में महारत हासिल रहती है. लेकिन जो हिरण चिड़ियाघर में पैदा हुए रहते है. उनके घुटने इतने मजबूत नहीं होते की वो शिकार होने से बच सके और भाग सके. इससे उनके शिकार होने का खतरा रहता है और उन्हें जंगली जानवरों के साथ ही कुत्तों के शिकार होने से रोका नहीं जा सकता. आगे उन्होंने कहा कि जू में इनकी संख्या बढ़ने से रोकने के कारगर उपाय ये है कि नर और मादा हिरण को अलग-अलग रखा जाए. साथ ही मजबूत और तंदरुस्त हिरण का ही मेटिंग कराए ताकि बच्चा भी तंदरुस्त और मजबूत पैदा हो. इससे संख्या कंट्रोल में रहेगी. साथ ही जू के दूसरे हिरणों की देखरेख भी अच्छे से हो सकेगी.
यूं बढ़ रही संख्या
बता दें कि कानन पेंडारी मीडियम जू में व्यवस्था मिलने और भरपेट चारा मिलने की वजह से यहां हिरणों के प्रजनन के आंकड़े बढ़ने लगे हैं. बीच-बीच में सीजेडआई से परमिशन लेकर इन्हें जंगल में छोड़ा तो जाता है. लेकिन जंगल में छोड़े जाने वालों की संख्या कम होती है. क्योंकि सीजेडआई अधिक संख्या में जानवरों को जंगल में छोड़ने के लिए परमिशन नहीं देती और जब परमिशन लेने की प्रक्रिया शुरू होती है. तब से लेकर परमिशन मिलने तक हिरणों के प्रजनन संख्या उतना ही बढ़ जाती है जितना छोड़ा जाना रहता है. यानी कि एक खेत जा ही नहीं पाता और दूसरा तैयार हो जाता है.
मौत का आंकड़ा भी कम नहीं
वहीं, अगर आंकड़ों की बात की जाए तो यहां मौत के आंकड़े भी ज्यादा सामने आते हैं. कुछ सालों में यहां पर बेशकीमती जंगली जानवरों की मौत हो चुकी है. दो काले तेंदुए, शेर, बाघ, शुतुरमुर्ग, हिप्पो, तेंदुआ यहां बेहतर इलाज के अभाव में मर चुका है. इसके अलावा एक बार में 22 चीतलों की मौत हुई थी. 22 चीतलों की मौत के कारण आज तक स्पष्ट नहीं हो पाए हैं. बीच-बीच में बीमार जानवरों की मौत भी होती रहती है.