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बिलासपुर में गौरा गौरी की पूजा संपन्न, निकाली गई बूढ़ा देव की शोभायात्रा, जानिए कौन हैं बूढ़ा देव

Gaura Gauri worship in Bilaspur बिलासपुर में गौरा गौरी की पूजा संपन्न हुई. इसके बाद गौरा गौरी के साथ सोमवार को बूढ़ा देव की शोभायात्रा निकाली गई. बूढ़ा देव की पूजा आदिवासी समाज शुरू से ही करते आ रहे हैं.

Gaura Gauri worship in Bilaspur
बिलासपुर में गौरा गौरी की पूजा संपन्न

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Nov 13, 2023, 6:12 PM IST

Updated : Nov 13, 2023, 6:56 PM IST

बूढ़ा देव की शोभायात्रा

बिलासपुर:छत्तीसगढ़ के पारंपरिक त्यौहारों में से एक गौरा गौरी पूजा सोमवार को की गई. सोमवार को गौरा गौरी पूजा के बाद आदिवासी समाज ने बूढ़ा देव की भी पूजा की. इस दौरान आदिवासी समाज ने शोभायात्रा निकाली, जिसमें मांदर की थाप पर आदिवासी समाज के लोग नाचते गाते नजर आए. यह पर्व दीपावली के दूसरे दिन मनाई जाती है.

महादेव के पुत्र माने जाते हैं बूढ़ा देव:इसमें गौरा गौरी पूजा के साथ ही आदिवासियों के इष्ट देव बूढ़ा देव की भी पूजा होती है. बूढ़ा देव जंगल के देवता को कहा जाता है. आदिवासियों का मानना है कि बूढ़ा देव भगवान महादेव के बेटे हैं. आदिवासी समाज इनकी पूजा इसलिए भी करते हैं ताकि जंगल में हरियाली बरकरार रहे. साथ ही जीव जंतुओं के साथ आदिवासी समाज भी जंगल में अपना जीवन सुकून से बीता सके.

आदिवासी समाज करते हैं बूढ़ा देव की पूजा: दरअसल, छत्तीसगढ़ आदिवासियों का प्रदेश है. यहां बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग जंगलों में रहते हैं. छत्तीसगढ़ के मूल जनजाति जंगल की देवी के साथ ही बूढ़ा देव की पूजा करते हैं. इनका मानना है कि बूढ़ा देव जंगल के राजा हैं, उनके आशीर्वाद से ही जंगल में हरियाली रहती है. जीव जंतु के साथ जनजाति के लोग निवास करते हैं, जंगल में आदिवासी कंदमूल खाते हैं और बूढ़ा देव के आशीर्वाद से जंगल में इनका जीवन सुखमय रहता है. बूढ़ा देव जंगल में रहने वाले आदिवासियों को बीमारियों से बचाते हैं. शहरी इलाकों में होने वाले बीमारी और नुकसान पहुंचाने वाले वायरस से इन्हें सुरक्षित रखते हैं. आदिवासी समाज भले ही आज शहरीय क्षेत्र में रहते हों, लेकिन ये आज भी अपनी परंपरा को निभाते आ रहे है.

हम बूढ़ा देव के वंशज हैं. इस नाते अपने इष्ट की पूजा करते आ रहे है. हम शुरू से ही इस परंपरा को निभाते आ रहे हैं. आगे भी बूढ़ा देव के आशीर्वाद से हम उनकी पूजा करते रहेंगे.-भागीरथी ध्रुव, स्थानीय

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बूढ़ा देव को चढ़ाई जाती है शराब:छत्तीसगढ़ के आदिवासी समाज के लोग जंगलों में रहते हैं. जंगलों में वे वन उपज के माध्यम से ही अपना जीवन यापन करते हैं. जंगली फल खाकर और इसे बाजार में बेचकर वे परिवार का पालन पोषण करते हैं. आदिवासी समाज महुआ को देवी का रूप मानते हैं और इसके फूल और फल से वह कई तरह की चीजें तैयार करते हैं. बूढ़ा देव की पूजा भी महुआ के फूल से बने शराब से होती है. आदिवासी समाज का मानना है कि महुआ से बनी शराब शरीर को ठंडक पहुंचाती है. दिमाग को शांत रखती है और शरीर में बीमारी होने से रोकती है. इसके अलावा महुआ की शराब से शरीर में चर्बी नहीं बनता, इसलिए महुआ और उससे बनी शराब की एक अलग ही मान्यता आदिवासी समाज में है. आदिवासी समाज महुआ से बने शराब को पवित्र मानते हैं. इसी शराब को बूढ़ा देव पर अर्पण कर उनकी पूजा की जाती है. पूजा के बाद बूढ़ा देव के मुंह में बीड़ी रख कर शोभायात्रा निकाली जाती है.

गौरा गौरी की पूजा के साथ संपन्न होता है ये पर्व:आदिवासी समाज गौरा गौरी की पूजा करते हैं. भगवान शंकर और माता पार्वती को गौरा गौरी कहा जाता है. इनकी पूजा कर शोभायात्रा निकाली जाती है, जिसमें समाज के लोग शामिल होते हैं. बूढ़ा देव की प्रतिमा के साथ गौरा गौरी की प्रतिमा को शहर के अलग-अलग क्षेत्र में घुमाया जाता है. माना जाता है कि जहां-जहां यह शोभायात्रा जाएगी वहां नकारात्मक सोच खत्म होती है और नुकसान पहुंचाने वाले वायरस खत्म होते हैं. बूढ़ा देव के आशीर्वाद से आदिवासी समाज आज जंगलों में फल फूल रहा है और बूढ़ा देव की पूजा कर यह अपने आने वाले भविष्य और जंगलों में हरियाली बरकरार रहे इसका आशीर्वाद मांगते हैं.

Last Updated : Nov 13, 2023, 6:56 PM IST

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