गौरेला-पेंड्रा-मरवाही: मरवाही में जल संसाधन विभाग की लेटलतीफी से दर्जनों गांव के किसान परेशान हैं. प्रशासनिक लेटलतीफी और उदासीनता ने किसानों को न सिर्फ हताश किया है, बल्कि किसान खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. जल संसाधन विभाग की ओर से 2005 में लोअर सोम डायवर्शन के जरिए एक नहर का निर्माण कराया गया था, लेकिन आज 15 साल बाद भी गांव के किसानों को पानी नहीं मिल सका है.
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साल 2005 में ग्राम सुराज अभियान के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने मरवाही विकासखंड में सिंचाई का रकबा बढ़ाने के उद्देश्य से लोअर सोम डायवर्शन के तहत ग्राम पंचायत से बंसी ताल तक नहर निर्माण की स्वीकृति दी थी. नहर की स्वीकृति मिलने के बाद से ही किसान काफी खुश थे. उनका मानना था कि नहर के बनने से उन्हें खेती में सहायता मिलेगी और साथ ही सिंचाई का रकबा भी बढेगा. इस घोषणा को 15 साल बीत चुके हैं, लेकिन किसानों को अब तक पानी की एक बूंद भी नहीं मिली है. जबकि घोषणा के तुरंत बाद से ही किसानों की भूमि अधिग्रहण कर ली गई थी.
नहर का निर्माण करते मजदूर खेतों में नहीं पहुंच रहा पानी
271 लाख कि इस नहर परियोजना से दर्जनों गांवों के किसानों को फायदा होना था, लेकिन प्रशासनिक लेटलतीफी और उदासीनता की वजह से किसान आज भी पानी के लिए तरस रहे हैं. वहीं अब नहर में लाइनिंग का काम भी गुणवत्ता विहीन है. किसानों का कहना है कि, 15 साल में अब तक केवल 5 किलोमीटर तक ही नहर का निर्माण किया गया है और वो भी गुणवत्ताविहीन है. मौके पर जल संसाधन विभाग का साइड इंचार्ज भी नहीं हैं.
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अधिकारियों ने साधी चुप्पी
जब जल संसाधन विभाग के अधिकारियों से बात की गई तो, उन्होंने इस मामले में कुछ भी बोलने से मना कर दिया. वहीं SDO ने देरी की वजह भारत सरकार से मिलने वाले फॉरेस्ट क्लीयरेंस में हुई देरी को बताते हुए इसका ठीकरा वन विभाग के मत्थे मढ़ दिया और गुणवत्ता के सवाल पर चुप्पी साधे रहे. नहर के निर्माण के लिए वन विभाग से 3 हेक्टेयर से ज्यादा कि जमीन का अधिग्रहण मांगा गया था, जिसके बाद से हेक्टेयर से कम में शुरु कर दिया गया. 3 हेक्टेयर का काम 1 हेक्टेयर में कैसे हुआ इसका जवाब भी विभाग के पास नहीं है.