बिलासपुर: कद्दावर नेताओं के गढ़ बिलासपुर में प्रमुख दलों के प्रत्याशियों के नाम फाइनल होने के बाद मुकाबला बेहद दिलचस्प नजर आ रहा है. यहां भाजपा और कांग्रेस ने किसी भी कद्दावर चेहरे पर इस बार भरोसा न जताते हुए नए चेहरों पर दांव खेला है. पहली बार लोकसभा चुनाव में दांव आजमा रही जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) भी बिलासपुर सीट पर अपनी दावेदारी कर रही है, जो मुकाबले को त्रिकोणीय संघर्ष की ओर ले जा रहा है.
इस मुद्दे पर ईटीवी भारत ने राजनीतिक जानकार अनिल तिवारी से बात की. उन्होंने कहा कि कुछ चुनावों में बिलासपुर सीट पर दोनों दलों ने बड़े चेहरों को आजमाया गया था. कांग्रेस से धाकड़ नेता करुणा शुक्ला और रेणु जोगी प्रत्याशी रह चुकी हैं. इसके अलावा बीजेपी से दिलीप सिंह जूदेव और लखन साहू मैदान में उतर चुके हैं, लेकिन इस बार परिस्थिति कुछ अलग ही है और दोनों ही दलों ने नए और युवा चेहरे पर दांव लगाया है.
इस बार बदली हैं परिस्थितियां
अनिल तिवारी के मुताबिक भाजपा की 2014 जैसी लहर इस बार नहीं है. 2014 में नरेंद्र मोदी की आंधी चली थी और लखन साहू जैसे नए चेहरे को इससे फायदा मिला और वो रिकॉर्ड 1लाख 76 हजार से अधिक वोट से जीत गए थे. लेकिन इस बार स्थिति कुछ और ही है भाजपा प्रदेश में सिटिंग सांसदों के खिलाफ बने विरोधी लहर को भांपते हुए नए और संघ के करीबी चेहरे अरुण साव को मैदान में उतारा है.
साव को टिकट देने के पीछे क्या वजह
जानकारों की मानें तो साव को टिकट देने के पीछे एक वजह यह कि बीजेपी वर्तमान सांसद के विरोध को डाइल्यूट करना चाहती है, दूसरा यह कि नया चेहरा अरुण साव के माध्यम से जातिगत वोट को भी साधा जा सकता है. अरुण साव ओबीसी वर्ग से आते हैं और बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं का 20 से 25 फीसदी वोटर ओबीसी वोटर के रूप में है.