छत्तीसगढ़

chhattisgarh

SPECIAL: कभी होली की जान हुआ करती थी बताशों की माला, अब कोई नहीं सुध लेने वाला

By

Published : Mar 9, 2020, 9:34 PM IST

Updated : Mar 9, 2020, 9:51 PM IST

कभी होली में रंग-बिरंगे बताशों की बहुत डिमांड हुआ करती थी लेकिन अब महंगाई और बनाने वालों की कमी की वजह से बताशों की माला यानि हरवा का व्यापार सिमटता जा रहा है.

Demand for batasha in Holi keeps on decreasing in bilaspur
बताशों की मालाएं

बिलासपुर: कुछ परंपराएं जो सदियों से चली आ रही हैं, उन पर अब बदलते परिस्थितियों की ऐसी मार पड़ी है, कि वो धीरे-धीरे गायब होती चली जा रही हैं. कभी होली में रंग-बिरंगे बताशों की बहुत डिमांड हुआ करती थी लेकिन अब महंगाई और बनाने वालों की कमी की वजह से बताशों की माला यानि हरवा का व्यापार सिमटता जा रहा है. आधुनिकता ने इस पारंपरिक देसी मिठाई के चलन को कमजोर कर दिया है.

बताशों की मालाएं

परंपरा के मुताबिक पहले लोग इन मालाओं को होली के दिनों में एक दूसरे को भेंट देते थे. रंग-बिरंगी मालाओं के माध्यम से रंगों के त्योहार में मिठास घुल जाती थी लेकिन धीरे-धीरे अब यह महज एक औपचारिकता बन कर रह गई है. हरवा को लेकर लोगों ने कहा कि 'अब ये एक दो दुकानों में ही नजर आते हैं'.

बताशों की मालाएं

हरवा बनाने वाले मजदूर भी नहीं मिल रहे

दुकानदारों की मानें, तो हरवा बनाने में अधिक मेहनत की जरूरत होती है. अब पहले के माफिक हरवा बनाने वाले मजदूर भी नहीं मिलते, जिसके कारण इनका बनना कम हो गया है. पहले डिमांड थी तो गोल बाजार और शनिचरी मार्केट रंग बिरंगे बताशों से सजी रहती थी, लेकिन अब बदलते रिवाजों से कुछ ही दुकानों में ये मिठाई देखने को मिलती है.

रंग-बिरंगे बताशे

रिश्तों में खोजनी पड़ती है मिठास

पहले परंपराएं ऐसी थी कि हर चीज में मिठास घुल जाती थी, आज हमें अपने रिश्तों में ही मिठाई खोजनी पड़ती है. उम्मीद है ये होली बताशों की माला की तरह आपके रिश्तों को भी मीठा कर जाए.

बताशों की मालाएं
Last Updated : Mar 9, 2020, 9:51 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details