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बिलासपुर: आवारा मवेशी धान की फसलों को पहुंचा रहे नुकसान, किसान परेशान

बिलासपुर के कोटा विधानसभा के गांव खैरा में आवारा मवेशी किसानों की फसलों को खा रहे हैं, जिससे किसान परेशान हैं. कुछ गांववाले मिलकर आवारा मवेशियों को एक जगह पर इकट्ठा करते हैं, ताकि उनकी फसले बची रहे. ग्रामीण बताते हैं कि वहां गौठान तो हैं, लेकिन कोई सुविधा नहीं है. जिससे कोई भी व्यक्ति वहां अपने मवेशियों को रखने के लिए तैयार नहीं है.

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आवारा मवेशी धान की फसलों को पहुंचा रहे नुकसान

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Published : Jul 30, 2020, 6:15 PM IST

Updated : Jul 30, 2020, 6:29 PM IST

बिलासपुर:जिले के कोटा विधानसभा के गांव खैरा में राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी के तहत गौठान निर्माण कराया गया है. लेकिन इस गौठान में यहां के किसानों को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है, जिसकी वजह से किसान परेशान हैं. रात के समय अवारा मवेशी उनकी फसलों को चट कर जा रहे हैं.

आवारा मवेशी धान की फसलों को पहुंचा रहे नुकसान

अपनी फसलों को मवेशियों से बचाने के लिए गांव के लोग एक समूह बनाकर गांव में घूमने वाले आवारा मवेशियों को पकड़ कर एक जगह इकट्ठा कर रहे हैं. जहां से शाम ढलते ही गांव के किसान उस जगह पहुंचकर अपने-अपने मवेशियों को अपने घर ले जा रहे हैं. जिस मवेशी का कोई मालिक नहीं होता है, उन मवेशियों को ग्रामीण गांव में चंदा इकट्ठा कर गाड़ी में भरकर दूरदराज इलाकों में छोड़ रहे हैं, ताकि उनकी फसल बच सके.

आवारा मवेशी धान की फसलों को पहुंचा रहे नुकसान

गौठान में नहीं रखे जाते आवारा मवेशी

आवारा मवेशियों को दूर छोड़ने के लिए गांव के लोग चंदा इकट्ठा कर एक पिकअप गाड़ी किराए पर लेते हैं. जिसमें वे आवारा मवेशियों को भरकर गांव से दूर रात के वक्त छोड़ आते हैं. गांववालों का कहना है कि खैरा गौठान में सुविधाएं तो है, लेकिन वहां के नियम के मुताबिक मवेशी मालिकों को शाम तक अपने पशुओं को वहां से वापस ले जाना होता है. परेशानी ये है कि आवारा मवेशियों की सुध लेने वाला कोई नहीं है, जिससे फसलों को नुकसान हो रहा है. वहीं कुछ लोगों का कहना है कि यहां गौठान के लिए कोई राशि नहीं आई है. ऐसे में लोग कैसे मवेशी को वहां पर रखेंगे. मवेशियों के लिए चारा-पानी खरीदने और मजदूर रखने के लिए उनके पास पैसे नहीं है. खैरा के गौठान में 4 महीने से पैसा नहीं आया है.

पढ़ें- कोरबा: रोका-छेका अभियान फेल ! कलेक्टर के आदेश के बाद खानापूर्ति कर रहे अधिकारी-कर्मचारी

ऐसे में सवाल उठता है कि कौन अपने मवेशियों को भूखा मरने के लिए गौठान पर रखेगा. यही वजह है कि गांव के ग्रामीण आवारा मवेशियों को पकड़कर गांव में एक जगह एकत्रित कर रख रहे हैं. जहां पर मवेशी मालिक पहुंचकर उन्हें ले जाते हैं. इसके बाद भी ज्यादातर मवेशी उस जगह पर बच जाते हैं. बचे हुए मवेशियों को गांव के लोग गाड़ी में भरकर दूसरे क्षेत्रों में छोड़ आते हैं.

एक महीने में ही फेल हुई योजना

बता दें, आज से ठीक एक महीने पहले 19 जून को पूरे छत्तीसगढ़ में रोका-छेका संकल्प योजना की शुरुआत हुई थी, लेकिन कई जिलों में यह संकल्प सिर्फ कागजों तक ही सीमित रही. छत्तीसगढ़ सरकार किसानों के लिए कई लाभकारी योजनाओं की शुरुआत करती आई है. इसमें से नरवा, गरुवा, घुरवा, बाड़ी जैसी योजना सरकार ने सत्ता में आते ही शुरू की थी, लेकिन घरातल पर ये तमाम योजनाएं जिम्मेदारों की लापरवाही के कारण फेल होती दिख रही है.

छत्तीसगढ़ में रोका-छेका की प्रथा

नरवा, गरुवा, घुरवा, बारी योजना के बाद इसी साल 19 जून को राज्य सरकार 'रोका-छेका संकल्प अभियान' की शुरुआत की थी. रोका-छेका की प्रथा छत्तीसगढ़ में वर्षों से चली आ रही है, जिसे अब सरकार अभियान के रूप में लेकर आई है.

Last Updated : Jul 30, 2020, 6:29 PM IST

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