बिलासपुर:रक्षाबंधन का त्योहार यानी भाई-बहन के प्रेम और विश्वास का त्योहार. इस साल कोरोना संकट ने सभी त्योहारों के रंग फीके कर दिए हैं. रक्षाबंधन पर भी इसका खासा असर पड़ा, लेकिन बहनें कहती हैं कि भाइयों के प्रति उनका प्रेम किसी भी संकटकाल में कमजोर नहीं पड़ सकता. मन का प्यार अटूट है. बहनों के प्यारे भाई दुनिया के किसी भी कोनों में हों, बहनों की दुआएं उन तक जरूर पहुंचती है.
कोरोना काल को देखते हुए जो भाई अपनी बहनों के पास नहीं जा पाए वे कहते हैं कि वर्तमान स्थिति को देखते हुए खुद का ख्याल रखना ज्यादा जरूरी है. इसलिए भले भाई-बहने साथ नहीं है, लेकिन प्यार तब भी बना हुआ है. भाई-बहन कहते हैं कि इस बार की राखी डिजिटल राखी है. दूर हैं तो क्या हुआ वीडियो कॉलिंग के जरिए इस बार इन दूरियों को कम किया जाएगा.
रक्षाबंधन की पौराणिक मान्यता
रक्षाबंधन के पौराणिक मान्यताओं को बताते हुए वरिष्ठ सामाजिक जानकार डॉक्टर विनय कुमार पाठक बताते हैं कि पुराणों में रक्षासूत्र की बात कही गई है, जो पुरोहितों और जजमानों के बीच के संबंध को बताता है. धर्म के अनुसार पुरोहित अपने जजमानों की रक्षा करते हैं और उन्हें वचन देते हुए रक्षासूत्र पहनाते हैं.
ऐसी मान्यता है कि पूरे परिवार पर उनका आशीर्वाद फलता था और इस तरह से यह परंपरा बेहद प्राचीन है. यह परंपरा मुगलकालीन समय की मांग को देखते हुए भाई-बहनों के त्यौहार के रूप आगे बढ़ाई गई. मुगलों की ज्यादती की वजह से भाइयों ने बहनों की रक्षा की बागडोर संभाली और रक्षाबंधन की परंपरा और ज्यादा विकसित हुई.