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हत्या करने के लिए इस्तेमाल में लाए गए वाहनों को नहीं मिलेगी क्षतिपूर्ति : HC - Bilaspur news

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने गुरुवार को मोटर व्हीकल एक्ट केस में सुनवाई की है. हाईकोर्ट ने कहा है कि जब किसी वाहन का इस्तेमाल हथियार की तरह किसी की हत्या करने में किया गया हो, तो उस वाहन की क्षतिपूर्ति नहीं की जाएगी.

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

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Published : Sep 4, 2020, 10:35 AM IST

बिलासपुर : जब वाहन का उपयोग हथियार की तरह हत्या करने के लिए इस्तेमाल हुआ हो तो क्षतिपूर्ति नहीं मिल सकती है. यह आदेश हाईकोर्ट ने मोटर व्हीकल एक्ट के मामले में सुनवाई करते हुए जारी किया है.

बता दें कि संतराम ध्रुव नामक एक ट्रक ड्राइवर ने 2008 की एक रात को अपने ट्रक से दो लोगों को विवाद के बाद कुचल दिया था, जिसमें अशोक सोलंकी और उसके दोस्त रामसेवक की मौत हो गई थी. इस केस में धारा 302 के तहत मामला दर्ज करते हुए आरोपी चालक को जेल भेज दिया गया था, जिस पर बाद में निचली अदालत ने सुनवाई करते हुए उसे उम्र कैद की सजा सुनाई थी.

मृतकों के परिजनों ने मोटर व्हीकल एक्ट के तहत किया था इंश्योरेंस क्लेम

बाद में मृतक अशोक की पत्नी राही सोलंकी और रामसेवक के परिजनों ने मोटर व्हीकल एक्ट के तहत इंश्योरेंस कंपनी के खिलाफ इंश्योरेंस क्लेम पेश किया था, लेकिन परिजनों की अपील बीमा कंपनी ने खारिज कर दी थी. जिसके खिलाफ उन्होंने दुर्घटना मोटर्स दावा कोर्ट में अपील की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए दुर्घटना मोटर दावा कोर्ट ने बीमा कंपनी यूनाइटेड इंडिया को 4 लाख 24 हजार रुपए मृतकों को देने का आदेश जारी किया था.

बीमा कंपनी ने दायर की थी हाईकोर्ट में याचिका

निचली अदालत के फैसले के खिलाफ बीमा कंपनी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. याचिका में बीमा कंपनी की ओर से कहा गया था कि यह दुर्घटना नहीं हत्या का मामला है. जिसके बाद हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए अपने फैसले में कहा है कि जब मामला हत्या का हो और वाहन का इस्तेमाल हथियार की तरह किया गया हो तो ऐसे मामले में क्षतिपूर्ति नहीं दी जा सकती. हाईकोर्ट ने अपना फैसला देने के बाद निचली अदालत द्वारा जारी किए गए फैसले को निरस्त कर दिया है.

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गौरतलब है कि वाहन चालक के केस में सुनवाई करते हुए निचली अदालत ने उसे उम्र कैद की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ उसने भी हाईकोर्ट में अपील दायर की है. जिसके मद्देनजर हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर वाहन चालक की अपील हाईकोर्ट में स्वीकार हो जाती है, तब मामले में बीमा कंपनी को पैसे देने होंगे. इस पूरे मामले पर हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अपना फैसला जारी किया है.

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