बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक आरक्षक के बिना ड्यूटी के सात साल तक वेतन लेने के मामले में राज्य के आला पुलिस अधिकारियों को नोटिस जारी किया है. पुलिस की जांच में खुलासा हुआ कि आरक्षक को सात साल में 32 लाख रुपये का वेतन जारी हुआ. जबकि वह सात साल तक ड्यूटी से गायब रहा. बाद में उसकी मौत हो गई.Chhattisgarh High Court notice to police officers
बिलासपुर पुलिस ने की थी जांच: बिना ड्यूटी के वेतन लेने के इस मामले का जैसे ही खुलासा हुआ. एसएसपी बिलासपुर ने इस केस में विभागीय जांच शुरू की. जांच में एसपी ऑफिस के वेतन शाखा के तीन कर्मचारियों की संलिप्तता पर जांच शुरू हुई. बिना सुनवाई के मौका दिए विभागीय जांच शुरू किए. जिसके खिलाफ सुधीर श्रीवास्तव ने हाई कोर्ट में याचिका लगाई. याचिका पर सुनवाई करते हुए गृह सचिव, डीजीपी, आईजी, एसपी सहित तत्कालीन जांच अधिकारी को कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. कोर्ट ने दो सप्ताह में जवाब पेश करने का आदेश जारी किया है. साथ ही उनसे संबंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने का आदेश दिया है
क्या है पूरा मामला: 7 सालों तक बिना ड्यूटी किये वेतन निकालने का पूरा मामला सिविल लाइन थाना और पुलिस अधीक्षक कार्यालय का है. आरक्षक जगमोहन पोर्ते साल 2013 में सिविल लाइन थाना में आरक्षक पद पर पदस्थ था. इसके बाद वह कहीं गायब हो गया. बावजूद इसके आरक्षक जगमोहन पोर्त का वेतन उसके खाते में जमा होता रहा. यह सिलसिला साल 2021 तक चला और वह वेतन निकलता रहा. मामले की जानकारी लगने के बाद प्रारम्भिक तौर पर पुलिस कप्तान ने तत्काल जांच का आदेश दिया. साथ ही वेतन के रूप में किए करीब 32 लाख रुपये के घोटाले का पता लगाने को कहा. प्रारम्भिक जांच के बाद पुलिस कप्तान पारूल माथुर ने वेतन शाखा के चार लोगों के खिलाफ विभागीय जांच का आदेश दिया. तत्कालीन एडिश्नल एसपी रोहित झा समेत आईसीयूडब्लू डीएसपी ने तत्कालीन वेतन शाखा प्रभारी भागीरथी महार, सुधीर श्रीवास्तव, आसुतोष कौशिक और सुरेन्द्र पटेल को जांच के लिए बुलाया. चारों ने जांच टीम से नोटिस मिलने के बाद पुलिस कप्तान को लिखित आवेदन दिया. उन्होंने ऐसे सभी दस्तावेज दिए जाने को कहा, जिस आधार पर उन्हें दोषी ठहराया गया है, बावजूद इसके पुलिस अधीक्षक कार्यालय से उन्हें कोई दस्तावेज नहीं दिया गया.