बिलासपुर: नहाय-खाय के साथ गुरुवार को छठ महापर्व की शुरुआत हो चुकी है. शुक्रवार को छठव्रती खरना (खीर का प्रसाद) खा कर अपने व्रत की शुरूवात करती हैं. इस बार शनिवार के दिन व्रती घाट पर भगवान आदित्यनाथ को पहला अर्घ्य देने पहुंचेंगी. इसे लेकर जिला प्रशासन ने पूरी तैयारी कर ली है.
अरपा किनारे होगी छठी मईया की आराधना बात अगर छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी बिलासपुर की करें तो यहां की जीवनदायिनी अरपा के किनारे मनाई जानेवाली छठपूजा देशभर में विख्यात हो चुकी है. बिलासपुर का ऐतिहासिक छठ घाट मैदान देश का सबसे बड़ा स्थाई छठघाट है जहां एकसाथ हजारों श्रद्धालु छठपूजा करने आते हैं.
देश का सबसे बड़ा छठघाट
बिलासपुर छठघाट की लंबाई साढ़े सात सौ मीटर है, जिसमें 500 मीटर के घाट को पक्का कर दिया गया है. लगभग दो दशक पहले ही बिलासपुर के ही कुछ जागरूक लोगों ने अरपा किनारे छठ घाट को विकसित करने का मन बनाया और फिर पाटलिपुत्रा संस्कृति मंच और भोजपुरी समाज ने इसे साकार किया. धीरे-धीरे इस छठघाट कि भव्यता और लोकआस्था इस कदर बढ़ गई कि बिलासपुर का यह स्थाई छठघाट देश में सबसे बड़े घाट के रूप में स्थापित हो गया.
प्रशासन और जनभागीदारी करते हैं नदी की सफाई
यहां डूबते और उदयीमान सूर्य को अर्घ्य देने एकसाथ हजारों लोगों की भीड़ जुटती है. जिसे प्रशासन और जनभागीदारी से बखूबी संभाला जाता है. अच्छी बात यह है कि इसी बहाने हर साल अरपा नदी की सफाई भी हो जाती है और लोकआस्था के इस पर्व को भी उत्साह के साथ मनाया जाता है.
छठ पूजा से होती है मनोकामना पूर्ण
खरना के बाद कल डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा और कल उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर विधिवत छठ लोकपर्व को पूरा किया जाएगा. यह पर्व कई मायनों में महत्वपूर्ण भी है. जानकारों की मानें तो इस पर्व के माध्यम से लोगों की मनोकामनाएं पूरी होती है. ऐसी मान्यता है कि, नियम से किया गया छठ पूजा त्वरित फल देता है.
लोकजुड़ाव का पर्व है छठ
इस पूजा में साफ सफाई का भी महत्व है जो स्वच्छ जीवनशैली का हमें संदेश देता है. साथ ही यह पर्व कठोर त्याग की भावना के लिए भी प्रेरित करता है. यह लोकपर्व डूबते और उगते सूर्य दोनों को अर्घ्य देने का पर्व है. यह लोकजुड़ाव का पर्व है और परंपरा को जीवित रखने का अनूठा संदेश भी देता है.