बिलासपुर :छत्तीसगढ़ वन विभाग ने असम से चार मादा वन भैंसों को लाने की तैयारी की थी. तभी इसको लेकर याचिका लगाई गई थी. हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और जस्टिस संजय के अग्रवाल की डबल बेंच ने याचिका पर स्टे लगाया था. लेकिन सुनवाई पूरी होने के बाद हाईकोर्ट ने रोक हटा ली है. अब असम सरकार की शर्तों के पालन के साथ असम से वन भैसों को लाया जा सकता है.
क्यों लगी थी याचिका : याचिका में कहा गया था कि छत्तीसगढ़ के वन भैसों के शुद्धतम जीन पूल मिक्स होने से बीमार बच्चे पैदा होंगे. छत्तीसगढ़ के वन भैसों का जीन पूल दूषित होने का खतरा है. साथ ही असम के वन भैसों यहां आजीवन कैद करके रखने पर उन पर भी खतरा मंडराएगा. इस मामले में वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट के साथ असम और छत्तीसगढ़ के वन भैंसों में जेनेटिक असमानता है. इसके अलावा, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को इकोलॉजिकल सूटेबल रिपोर्ट नहीं दी गई थी. इन मुद्दों को लेकर पर्यावरणविद् नितिन सिंघवी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई थी.
वनविभाग ने कोर्ट में दी जानकारी : 10 अप्रैल को हुई सुनवाई में, छत्तीसगढ़ वन विभाग ने वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट की नई रिपोर्ट और असम सरकार के वन विभाग को सशर्त दी गई अनुमति की जानकारी कोर्ट को दी है. जिसमें वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट की नई रिपोर्ट जमा की है. रिपोर्ट में असम के वन भैंसों को ब्रीडिंग के लिए उपयोग में लाने की बात कही गई है.असम सरकार की जो अनुमति वन विभाग ने कोर्ट में प्रस्तुत की है. उसमें शर्त भी रखा गया है.राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने असम के वन भैंसों के छत्तीसगढ़ में इकोलॉजिकल सूटेबिलिटी की रिपोर्ट दे दी है. रिपोर्ट देने के बाद ही वन भैंसों को असम से छत्तीसगढ़ लाने की अनुमति मिली है.