Bilaspur High Court बिलासपुर सिम्स अस्पताल नहीं, बड़ा कचरा घर है : हाईकोर्ट - महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा
Bilaspur High Court छत्तीसगढ़ आयुर्वैदिक संस्थान यानी सिम्स को लेकर हाईकोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने सिम्स को अस्पताल नहीं बल्कि कचरा घर कहा है. सिम्स की बदहाली और इलाज में लापरवाही को लेकर समाचार पत्रों में छपी खबरों को लेकर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सुओ मोटो पीआईएल पर सुनवाई की. जिसमें सिम्स की व्यवस्था सुधारने के निर्देश दिए थे. इसके बाद लगातार इस मामले में कोर्ट में सुनवाई चल रही है.रोजाना ही कोर्ट मामले में नए-नए निर्देश दे रहे हैं. CIMS big garbage house
बिलासपुर :सिम्स में अव्यवस्था, इलाज में लापरवाही, मशीनों का इस्तेमाल नहीं करना और मरीजों को पैथोलैब में जांच करने वालों की भीड़ से लेकर मरीजों को इलाज के लिए हफ्तों इंतजार करना पड़ता है. इसके अलावा व्यवस्था सही नहीं होने की वजह से मरीजों की जान भी जा रही है. मामले को लेकर हाईकोर्ट ने गंभीरता दिखाते हुए सिम्स प्रबंधन पर कार्रवाई करने कोर्ट ने शासन को निर्देश दिया था. यहां आईएएस ओएसडी नियुक्त करने कहा था. जिस पर शासन ने आर प्रसन्ना को ओएसडी नियुक्त कर दिया . जिसमें वे 15 दिन तक रहकर सिम्स की अव्यवस्था को दूर करेंगे.
सिम्स नहीं कचरा घर :बिलासपुर छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने बिलासपुर के सिम्स मेडिकल कॉलेज अस्पताल की व्यवस्था को लेकर एक जनहित याचिका में सुनवाई की है. सिम्स की अवस्थाओं को लेकर कोर्ट ने कोर्ट कमिश्नर नियुक्त किया था. कोर्ट कमिश्नर और एडवोकेट जनरल की टीम सिम्स मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंचकर यहां की व्यवस्था और इलाज को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की थी. रिपोर्ट मिलने के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिंह ने गंभीर नाराजगी जताई. जस्टिस रमेश सिंह ने सिम्स को अस्पताल नहीं बल्कि एक बड़ा कचरा घर कहा.
एक्सरे विभाग के सामने गटर:कोर्ट का कहना है कि यह अस्पताल तो बिल्कुल नहीं है. कोर्ट ने 48 घंटे के अंदर एक आईएएस को सिम्स में ओएसडी बनाने का निर्देश शासन को दिया था. इसमें मुख्य सचिव भी निरंतर सहयोग करेंगे. अब चीफ जस्टिस और जस्टिस एन के चंद्रवंशी की नियमित बेंच में सुनवाई चल रही है. महाधिवक्ता सतीश चंद्र वर्मा ने खुद अपनी रिपोर्ट में बताया कि सिम्स के एक्सरे विभाग के ठीक सामने बड़ा गटर हैं. ड्रेनेज ही नहीं है. यह सब वायरस का घर है.
करोड़ों की मशीन पड़ी है बेकार :इस बात को लेकर कोर्ट कमिश्नरों ने भी स्वीकार किया है. पहले यहां 350 बेड थे.लेकिनअब मरीजों की संख्या 700 तक हो गई है. इसके लिए नया इंतजाम नहीं किया गया है.इसके अलावा यहां अरबो रुपए की मशीन है. लेकिन ना ही इंजीनियर है और ना ही टेक्नीशियन इसे चला पाते हैं. इसकी वजह से मशीन हमेशा बंद रहती है. मरीजों को कई गंभीर बीमारियों की जांच के लिए निजी अस्पतालों में मोटी रकम चुकानी पड़ती है.
वार्डों में व्यवस्था नहीं, बाथरूम की गंदगी से मरीज हलाकन : जांच टीम के सदस्य जब सिम्स निरीक्षण के लिए पहुंचे तो वहां मरीजों से बातचीत की और व्यवस्थाएं देखी. अस्पताल में वार्डों में पर्याप्त व्यवस्था नहीं और बाथरूम में गंदगी पसरी थी. अस्पताल में मरीजों को पीने का पानी आसानी से नहीं मिल रहा है. इसी तरह वार्डों में एक ही बाथरूम पुरुषों और महिलाओं के लिए इस्तेमाल होता है. साफ-सफाई भी नहीं होती. एमआरडी में कुछ ही कंप्यूटर और रजिस्ट्रेशन कराने वालों की भीड़ रहती है. मामले में कोर्ट रोजाना ही सिम्स के अधिकारियों को फटकार लगा रही है और मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था देने के निर्देश दिए है.