बिलासपुर : ईद उल फित्र के बाद इस्लाम में दूसरा सबसे बड़ा त्योहार ईद उल अजहा है, जो 29 जून को मनाया जाएगा. सऊदी अरब के मक्का शहर पहुंचे आजमीने हज जहां हज के अरकान पूरे करेंगे वहीं खुदा की राह में जानवरों का कुर्बानी पेश की जाएगी. कुर्बानी का सिलसिला तीन दिनों तक चलेगा. 29 जून को ईद उल अजहा है और इसके दूसरे और तीसरे दिन यानी 30 जून और 1 जुलाई को भी जानवरों की कुर्बानी होगी. सुबह ईदगाहों में ईद उल अजहा की नमाज अदा करने के बाद उम्मते मुस्लिमा अपने अपने घरों में जानवरों की कुर्बानी देंगे.
ईद उल अजहा पर किस पर बाजिब है कुर्बानी:शरीयत के मुताबिक कुर्बानी कराना हर उस औरत और मर्द के लिए वाजिब है, जिसके पास 13 हजार रुपए या उसके बराबर सोना या चांदी है. ईद उल अजहा पर कुर्बानी देना वाजिब है, जिसका मुकाम फर्ज के ठीक नीचे है. अगर हैसियत होते हुए भी किसी शख्स ने कुर्बानी नहीं दी तो वह गुनाहगार होगा. जरूरी नहीं कि कुर्बानी किसी महंगे जानदार की की जाए. हर जगह जामतखानों में कुर्बानी के हिस्से होते हैं, जिसमें हिस्सेदार बना जा सकता है.
यह है ईद उल अजहा पर कुर्बानी का इतिहास: कुर्बानी का इतिहास पैगंबर हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम से जुड़ा है. ख्वाब में खुदा का हुक्म पाकर अपने बेटे हजरत इस्माईल अलैहिस्सलाम को कुर्बान करने के लिए राजी हो गए. जब हजरत इब्राहिम बेटे को जबा करने जा रहे थे तो हजरत इस्माईल ने उन्हें अपनी आंखों पर पट्टी बांध लेने को कहा. नन्हें से हजरत इस्माईल ने ऐसा इसलिए कहा ताकि उनके पिता खुदा का हुक्म पूरा करने में जरा भी न हिचकें. हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने ऐसा ही किया. आंखों पर पट्टी बांधने के बाद हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने बेटे की गर्दन पर छुरी चला दी और खुदा का हुक्म पूरा किया. मगर जब आंखों से पट्टी हटाई तो हजरत इस्माईल सामने खड़े मुस्कुरा रहे हैं और उनके बेटे की जगह दुंबे की कुर्बानी हो चुकी थी, जिसे फरिश्तों के सरदार जिब्रील अमीन खुदा के हुक्म से जन्नत से लाए थे. दरअसल ये खुदा की तरफ से हजरत इब्राहिम की आजमाइश थी. हजरत इब्राहिम अलैहिस्सलाम की यह अदा खुदा का इतनी पसंद आई कि कयामत तक के लिए उम्मते मुस्लिमा पर इसे वाजिब कर दिया.