बीजापुर:चर्चितऐडसमेटा गोलीकांडकी 10वीं बरसी पर पीड़ितों के परिजन और कई गांव के लोग एक बार फिर इकट्ठा हुए और न्याय की मांग की. आदिवासियों ने कहा कि इस घटना को 10 साल पूरे हो गए लेकिन अभी तक दोषी पुलिसकर्मियों और प्रशासन के अधिकारियों को कोई सजा नहीं मिली. आदिवासियों ने एक सुर में कहा कि यदि आदिवासी दोषी होते हैं तो एक दिन के अंदर सजा दे दी जाती है लेकिन पुलिस प्रशासन पर कार्रवाई करने में इतने साल लग रहे हैं.? आदिवासी मृतकों के परिजनों को एक-एक करोड़ और घायलों को पचास-पचास लाख मुआवजा देने की मांग कर रहे हैं.
आदिवासियों की जान की कीमत क्या 20 लाख रुपये: आदिवासियों की नारजगी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने मंत्री कवासी लखमा और विधायक विक्रम मंडावी को अपशब्द तक कह दिया.
17 मई 2013 को नक्सली कहकर पुलिस प्रशासन ने अंधाधुंध गोली चला दी. जिसमें 4 बच्चे समेत 8 लोगों की मौत हो गई. उन शहीदों को याद करने विशाल जनसभा का आयोजन किया गया है. सरकार से मांग है कि पूरे छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर अत्याचार किया जा रहा है. आदिवासियों की गलती होने पर सजा देने में बिल्कुल देर नहीं की जाती लेकिन पुलिस प्रशासन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है. संविधान सबके लिए बराबर है. हमें 20 लाख रुपये का मुआवजा दिया जा रहा है. हमारी जान की कीमत क्या सिर्फ 20 लाख रुपये हैं. सरकार चुप क्यों बैठी है.? न्याय नहीं मिलने पर आंदोलन और उग्र हो जाएगा."- मूलवासी मंच का सदस्य, बुधरू कारम
मंच के एक और सदस्य का कहना है कि कवासी लखमा और विक्रम मंडावी आए थे. उन्होंने कहा कि तुम्हारी मांगे हम पूरा करेंगे. हर बार वे आते हैं और यहीं कहते हैं. चोर तरह की बात कहकर निकल जाते हैं. घुटने टेककर वोट मांगते हैं और निकल जाते हैं.