बीजापुर :जिले में नक्सल विरोधी अभियान (anti naxal campaign) के तहत पुलिस को लगातार सफलता मिलती जा रही है. वहीं इलाके के अंदरूनी गांव के ग्रामीणों राहत भी मिल रही है. इसी प्रकार का एक और पुलिस को अहम सफलता मिली है. जिला पुलिस को थाना मिरतुर (Thana Mirtur) क्षेत्रान्तर्गत पोमरा के जंगलों में नक्सलियों के डीव्हीसीएम मोहन कड़ती, डीव्हीसीएम सुमित्रा, माटवाड़ा एलओएस कमाण्डर रमेश एवं 30-40 नक्सलियों की उपस्थिति की सूचना मिलते ही पुलिस मौके के लिए रवाना हुई. (Four naxalites killed in Bijapur )शुक्रवार सुबह 7.30 बजें पोमरा के जंगलों में पुलिस और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ हुये जिस मुठभेड़ में तीन नक्सलियों ढेर हुए. सुरक्षा बलों की बड़ी कार्यवाई देखने को मिली है. डीआरजी, एसटीएफ एवं केरिपु बल की संयुक्त कार्यवाई में बड़ी सफलता मिली है. बहरहाल सर्चिंग कार्यवाई जारी है. बड़े लीडर्स के मारे जाने से नक्सली संगठन में उनकी गतिविधि में कमी होती है.
छत्तीसगढ़ में हुए बड़े नक्सली हमले :भले ही पुलिस ने नक्सलियों पर इन दिनों शिकंजा कस रखा है. लेकिन नक्सली हमलों का इतिहास देखें तो बस्तर की धरती कई बार जवानों के खून से लाल हुई है.आज हम आपको बता रहे हैं.छत्तीसगढ़ के उन बड़े नक्सली हमलों के बारे में जिनमें जवानों के साथ साथ जन प्रतिनिधि भी शहीद हुए हैं. ( History of naxal attacks in Chhattisgarh)
2010 में शहीद हुए थे सीआरपीएफ के 76 जवान :साल 2010 में केंद्र सरकार द्वारा चलाए जा रहे ऑपरेशन ग्रीनहंट का रंग सीआरपीएफ के जवानों के खून से लाल हो गया था. 6 अप्रैल 2010 को सुकमा जिले के ताड़मेटला में हुआ था.इस हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गए थे. तकरीबन 1 हजार से ज्यादा नक्सलियों ने घात लगाकर 150 जवानों को घेर लिया, जवानों के पास बचने का कोई रास्ता नहीं बचा था. इस घटना ने हर किसी को झखझोर कर रख दिया था.
2013 में झीरम की धरती हुई थी लाल :सुकमा जिले की दरभा घाटी में 25 मई 2013 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर नक्सलियों ने हमला किया था. इस हमले में राज्य के पूर्व मंत्री नंद कुमार पटेल, वरिष्ठ नेता महेंद्र कर्मा और विद्याचरण शुक्ल सहित कुल 32 लोगों शहीद हुए थे. जबकि 30 से ज्यादा लोग घायल हुए थे.