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कभी प्रहरियों से घिरा हुआ बीजापुर का राजमहल आज बयां कर रहा अपनी बदहाली - भोपालपटनम का इतिहास

बीजापुर में एक रियासतकालीन राजमहल है जो संरक्षण के अभाव में अपनी बदहाली बयां कर रहा है. कभी ये महल आदिवासी ग्रामीणों से घिरा होता था. लेकिन आज इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.

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बीजापुर का राजमहल

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Published : May 7, 2021, 10:08 PM IST

बीजापुर: बस्तर संभाग अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ ही ऐतिहासिक और पुरातात्विक धरोहरों के लिए भी जाना जाता है. यहां ऐसी की धरोहर हैं जो कई सालो पुरानी है. रियासतकालीन है. इन प्राचीन धरोहरों का अपना अलग महत्व है. ये धरोहर संभाग की पहचान है. ऐसी ही एक पुरातात्विक धरोहर है बीजापुर में. 1900 ईसवी में बना बीजापुर का राजमहल. बीजापुर के राजमहल की भव्यता देखते ही बनती है. लेकिन संरक्षण के अभाव में आज ये राजमहल खंडहर में तब्दील हो चुका है.

राजमहल की बदहाली

महल का इतिहास

इतिहासकारों के मुताबिक भोपालपटनम के आदिवासी ग्रामीण इस महल के रक्षक हुआ करते थे. वे चारों ओर पहरेदारी किया करते थे. आदिवासी ग्रामीण 24 घंटे राजमहल की रक्षा में तैनात रहते थे. भोपालपट्टनम में कोई भी बाहरी व्यक्ति राजा के अनुमति के बिना अंदर जा सकता था. तब साल 1795 में अंग्रेज शासन काल में एक अंग्रेज अधिकारी एसी ब्लंट ने ग्रामीणों से युद्ध के बाद राजा की अनुमति से भोपालपटनम में प्रवेश किया.

भोपालपट्टनम का इतिहास

ब्रिटिश काल में भोपालपटनम एक अच्छी जमीदारी थी. जिसका कुल परीक्षेत्र 722 वर्ग फिट था. 1908 से पहले भोपालपटनम में राजमहल, पुलिस थाना, इंजीनियरिंग कार्यालय और तहसील कार्यालय भी बनाया गया था. इस इलाके में सागौन जैसी कीमती लकड़ियां आय का साधन थी. उस समय गोदावरी और इंद्रावती नदी से लकड़ियों का निर्यात किया जाता था. बस्तर में मध्यकाल से लेकर रियासत काल तक शासन संचालन में जमीदारों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका रही है. बस्तर में फोतकेल पामेड़-कुटरु, भोपालपटनम, सुकमा चिंतलनार, कोत्तापल्ली और परलकोट प्रमुख जमीदारियां रही है. जिसमें में से कुटरू सबसे बड़ी तो फोतकेल सबसे छोटी जमीदारी रही.

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14वीं सदी में बस्तर पहुंचे अन्नमदेव

नागवंशी राजाओं ने बस्तर को गढ़ो में बांटकर नायकों को नियुक्त किया था. जमीदारियों का विकास 14वीं सदी में आंध्र प्रदेश के वारंगल से आए अन्नमदेव के बस्तर पदार्पण के साथ हुआ. वारंगल में हुए तुगलकी आक्रमण के कारण काकतीय साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो चुका था. वारंगल के शासक प्रताप रुद्र काकतीय बुरी तरह से हार चुके थे. अनुज अन्नदेव ने पड़ोसी चक्रकोट बस्तर में प्रवेश कर अपना शासन स्थापित किया. यहां चक्रकोट के नागवंशियों की महान विरासत आपसी सामंजस्य की कमी और कमजोर नेतृत्व के कारण पतन की ओर बढ़ रही थी. अन्नदेव महाराज ने इन कमजोरियों का फायदा उठाकर बस्तर के बड़े क्षेत्र पर अपना अधिकार जमा लिया.

वारंगल से आए थे अन्नमदेव

अन्नमदेव के साथ कुछ प्रमुख सहयोगी और सेवादार भी वारंगल से यहां आए थे. जिन्हें उनकी सेवा के बदले जमींदारी देकर उपकृत किया गया. ऐसे ही अन्नमदेव के एक प्रमुख सहयोगी थे नाहर सिंह भाई. नाहर सिंह भाई अन्नमदेव महाराज के पालकी वाहक थे. उन्होंने पालकी में अन्नमदेव महाराज को बैठाकर चक्रकोट बस्तर में प्रवेश करवाया. कहा जाता है कि रास्ते में एक बड़ा सा अजगर अचानक सामने आ गया था. तब नाहर सिंह ने अपनी सूझबूझ से अजगर को हटाकर मार्ग प्रशस्त किया था. इस कारण उन्हें पाम्भोई की उपाधि दी गई थी. पाम अजगर को कहा जाता है, नाहर सिंह और उसके पूर्वजों ने काकतीय शासकों की बहुत सेवा की थी. उन पर होने वाले हर आक्रमण को वीरता पूर्वक सामना किया था. इन सभी सेवाओं के बदले नाहर सिंह पाम्भोई को अन्नमदेव महाराज ने भोपालपटनम का जमींदार बना दिया.

बंदरगाह हुआ करता था भोपालपटनम

इंद्रावती और गोदावरी के तट पर स्थित भोपालपटनम नाग युग में चक्रकोट राज्य का मुख्य बंदरगाह था. पटनम दक्षिण भारतीय शब्द है. जिसका मतलब है बंदरगाह. वहीं भोपाल भूपाल के अपभ्रंश से बना है. भोपालपटनम का शाब्दिक अर्थ है राजा का बंदरगाह.

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