बेमेतरा: परिंदे किसी सरहद के मोहताज नहीं होते, उन्हें तो बस उड़ान भरनी होती है. सरहद की लकीरें और सियासी बंदिशों से दूर ये आजाद पंछी कहीं भी किसी भी मुल्क में अपना आशियाना बना लेते हैं. इन दिनों बेमेतरा जिले के कटई गांव में भी हजारों मील की यात्रा कर एशियाई देशों से दुर्लभ साइबेरियन पक्षी हर साल की तरह इस बार भी मानसून से पहले आकर डेरा डाले हुए हैं. ये पक्षी शाम को आसमानी करतब दिखाते हैं, जिसके चलते नजारा काफी मनमोहक होता है.
अच्छी बारिश का संदेश लेकर आते हैं ये पक्षी स्थानीय बताते हैं, नवागढ़ ब्लॉक के कटई गांव में करीब 50 सालों से विदेशी मेहमान आ रहे हैं. ये पक्षी इस समय गांव के बरगद पीपल के वृक्षों पर अपना डेरा जमाए हुए हैं. गांव वालों ने बताया कि जब शाम को पक्षी आसमान में मंडराते है तो मानों दिनभर की मेहनत और थकान इन्हें देखकर ही छूमंतर हो जाती है. इन पक्षियों से गांव वालों को कोई खतरा नहीं है. वहीं ग्रामीण भी साइबेरियन पक्षी को मेहमान की तरह मानते हैं. जिसके चलते इन्हें किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया जाता. साथ ही ग्रामीण शिकारियों से भी इनकी देखभाल करते हैं.
सात समंदर पार से आते हैं मेहमान
सात समंदर पार कर आने वाले आकाशीय मेहमानों ने कटई में डेरा डाल दिया है. लगभग एक महीने की लंबी यात्रा कर यहां पहुंचे साइबेरियन पक्षियों के चलते तालाब और हांफ नदी के तटों का नजारा बदल गया है. एक ओर जहां खुशनुमा मौसम के कारण गांव में रहने वाले लोगो में खुशी का माहौल है, वहीं विदेशी मेहमानों की मौजूदगी गांव की खुबसूरती पर चार चांद लगा रही है.
गांव के मंदिर के पास पेड़ों में बनाते हैं बसेरा
भारत के पड़ोसी एशियाई देशों से उड़ान भरकर उनके आने का सिलसिला मई से शुरू हो जाता है, जो जून तक जारी रहता है. आमतौर पर जुलाई लगते ही ये पक्षी गांव के मंदिर के आसपास स्थित बरगद, पीपल, इमली और अन्य ऊंचे पेड़ों में अपना घोसला बनाने लगते हैं. घोसले में अंडा देने के बाद उसमें से निकले चूजे को सुरक्षित रखना शुरू कर देते हैं. अक्टूबर-नवंबर के मध्य ये पक्षी वापस लौट जाते हैं.
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मानसून के आगमन की देते हैं जानकारी
साइबेरियन पक्षी और कटई के ग्रामीणों के बीच अनोखा रिश्ता है. सालों से यहां के ग्रामीण साइबेरियन पक्षियों की रक्षा करते आ रहे हैं. इस गांव में यह मान्यता भी है कि इन पक्षियों के आने से अच्छी बारिश होती है और फसल अच्छी होती है. जानकारों का कहना है कि जलवायु पक्षियों के अनुकूल होने की वजह से कटई में हर साल ये पक्षी पहुंचते हैं. हांफ नदी, तलाब और खेतों के किनारे पक्षियों का प्रिय भोजन घोंघा और मछली भी मिल जाता है.
अगर पक्षी जल्दी लौटे तो पड़ता है अकाल
50 सालों से ग्राम कटई में आ रहे साइबेरियन पक्षियों के विषय में ग्रामीण बताते हैं, यह पक्षी मानसून से 10 से 15 दिनों पहले गांव में आकर वृक्षों में अपना बसेरा बना लेते हैं और नवंबर महीने में वापस चले जाते हैं. ग्रामीणों ने बताया की विदेशी मेहमानों का यह प्रजनन काल होता है. यही अंडे और बच्चे होते हैं और जाते वक्त अपने बच्चों के साथ जाते हैं. वहीं अगर यह पक्षी अगस्त या सितंबर में अंडे और बच्चे छोड़कर जल्दी वापस चले गए तो ऐसा माना जाता है कि इस साल बारिश अच्छी नहीं होगी और जिससे अच्छी फसल होने की उम्मीद भी खत्म हो जाती है.