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SPECIAL: संतान की दीर्घायु का पर्व कमरछठ, इस दिन महिलाएं सगरी कुंड बनाकर करती हैं पूजा अर्चना - कमरछठ पर्व

आज हलषष्ठी का पर्व मनाया जा रहा है. इस दिन माताएं परिवार की खुशहाली और संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं.

kamarchat festival being celebrated on 9 august
कमरछठ

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Published : Aug 9, 2020, 2:56 PM IST

बेमेतरा: भादो महीने की कृष्ण पक्ष की षष्ठी को हलषष्ठी पर्व मनाया जाता है. इसे छत्तीसगढ़ में कमरछठ के नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्मोत्सव मनाया जाता है. बलराम को शेषनाग का अवतार भी माना जाता है. भगवान विष्णु के अधिकांश अवतारों में शेषनाग किसी न किसी रूप में उनके साथ हमेशा अवतरित हुए हैं. हिंदू धर्म शास्त्रानुसार भगवान बलराम का प्रधान शस्त्र हल और मूसल है. हल धारण करने के कारण भी बलराम को हलधर कहा जाता है.

संतान की दीर्घायु का पर्व कमरछठ

बलराम, श्रीकृष्ण के बड़े भाई थे.

बता दें कि बलराम अपने माता-पिता के 7वें संतान थे. यह पर्व श्रावण पूर्णिमा के 6 दिन बाद चंद्रषष्ठी, बलदेव छठ, रंधन षष्ठी के नाम से मनाया जाता है. इस दिन माताएं षष्ठी माता की पूजा करके परिवार की खुशहाली और संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. इस दिन बिना हल जोते उगने वाले पसहर चावल और भैंस के दूध से बना घी, दही का भोग लगाने का खासा महत्व है. बलभद्र या बलराम श्री कृष्ण के सौतेले बड़े भाई थे जो रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे. बलराम, हलधर, हलायुध, संकर्षण आदि इनके अनेक नाम हैं. बलभद्र के सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थी जिन्हें चित्रा भी कहते हैं

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कृष्ण के भाई बलराम का हुआ था जन्म
मान्यता है कि माता देवकी के छह पुत्रों को जब कंस ने मार दिया तब पुत्र की रक्षा की कामना के लिए माता देवकी ने भादो कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को षष्ठी देवी की आराधना करते हुए व्रत रखा था. तब से महिलाएं संतान के दीर्घायु होने के लिए यह व्रत रखती हैं.

बिना हल जोते उगता है पसहर चावल
पसहर चावल को खेतों में उगाया नहीं जाता. यह चावल बिना हल जोते अपने आप खेतों की मेड़, तालाब, पोखर या अन्य जगहों पर उगता है. कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदेव के शस्त्र हल को महत्व देने के लिए बिना हल चलाए उगने वाले पसहर चावल का पूजा में इस्तेमाल किया जाता है. पूजा के दौरान महिलाएं पसहर चावल को पकाकर भोग लगाती हैं, साथ ही इसी चावल का सेवन करती हैं. बता दें कि जिले में महिलाएं खुद ही पसहर चावल को पौधे से निकाल कर लाती हैं फिर दो महीने बाद उसे ढेकी में कूट कर चावल निकाला जाता है.

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खेत से उगाए अन्न का महिलाएं नहीं करती सेवन

महिलाएं एक जगह पर एकजुट होकर सगरी का निर्माण कर भूमि का पूजन करती हैं. इस दिन खेत में उगाए हुए या जोते हुए अनाजों और सब्जियों को नहीं खाया जाता. साथ ही भैंस का दूध, दही, घी ये उससे बने किसी भी वस्तु को खाने की पंरपरा है. इसलिए महिलाएं इस दिन तालाब में उगे पसही/तिन्नी का चावल/पसहर के चावल खाकर व्रत रखती हैं. इस दिन गाय का दूध दही, घी का प्रयोग वर्जित है. महिलाएं मिट्टी की चुकिया बनाकर पूजा करती हैं. आज पूजा में लाई और चना कांसी के पौधे, पलाश के पत्ते उपयोग में लाए जाते हैं.

संतान की लंबी उम्र के लिए माताएं रखती है ये व्रत
मान्यता है की आज के दिन ही शेष नाग अवतार भगवान बलराम का जन्म हुआ था. मान्यता अनुसार माता देवकी के छह पुत्रों को जब कंस ने मार दिया तब पुत्र की रक्षा की कामना के लिए उन्होंने भादो कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को षष्ठी देवी की आराधना करते हुए यह व्रत रखा था

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