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बेमेतरा में गूंजा 'छेरछेरा, माई कोठी के धान ल हेर हेरा'

बेमेतरा में परंपरागत तरीके से छेरछेरा का पर्व मनाया गया. जिसमें सुबह से ही घरों में छेरछेरा दान लेने आए नन्हे बच्चों की टोली को लोगों ने शगुन स्वरूप अन्न का दान किया.

chherchera festival in bemetra
दान मांगते बच्चे

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Published : Jan 28, 2021, 4:51 PM IST

Updated : Jan 28, 2021, 7:51 PM IST

बेमेतरा: छत्तीसगढ़ में पारंपरिक त्योहारों का विशेष महत्व है. प्रदेश में करीब सभी त्योहार खेती किसानी से जुड़े हुए हैं. इन्हीं में से एक है पौष महीने की पुर्णिमा को मनाए जाने वाला 'छेरछेरा' त्योहार. जिसे 'छेरछेरा पुन्नी' भी कहा जाता है. इस दिन दान का बड़ा महत्व होता है. इस दिन लोग अन्न का दान करते हैं. वहीं सुबह से बच्चों की टोली लोगों के घरों में दान लेने जाती है.

छेरछेरा मनाते बच्चे

प्रदेश के गांवो में खासकर इस दिन सुबह से ही नन्हे बच्चो और युवाओ की टोलियां घर-घर जाकर धान मांगते हैं. बच्चे 'छेरछेरा माई कोठी के धान ला हेर हेरा और आरन दारन कोदो दरन जभे देबे तभे टरन' बोलते हुए दान मांगते हैं. नई फसल होने के बाद किसान अपनी घर के कोठी में धान रखते हैं. जिसे दान में दिया जाता है. यह त्यौहार प्रदेश की सामाजिक समरसता, समृद्ध दानशीलता का प्रतीक है.

बच्चों की टोली

छेरछेरा को लेकर पौराणिक मान्यताएं

छेरछेरा पर्व को लेकर अलग-अलग तरह की जनश्रुति और पैराणिक मान्यताएं भी हैं. कहा जाता है कि आज ही के दिन भगवान शंकर ने माता अन्नपूर्णा से अन्न का दान लिया था. वही प्रदेश के रतनपुर रियासत के राजा अपने सालो के प्रवास के बाद वापस रतनपुर लौटे थे. जिनकी आवभवत में राजमहल से प्रजा को दान स्वरूप अन्न दिया गया था.

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गांव-गांव में छेरछेरा की गूंज

आज गांव के हर घर पर 'छेरछेरा, कोठी के धान ल हेर हेरा' की गूंज सुनाई दे रही है. पौष पूर्णिमा के अवसर पर मनाए जाने वाले इस पर्व के लिए लोगों में काफी उत्साह दिखा. पर्व में ग्रामीणों ने अन्नदान की परंपरा का निर्वहन किया और नन्हे बच्चों को शगुन स्वरूप अन्न का दान किया.

दान लेने निकली बच्चों की टोली

पांडुलिपि में है कथा का उल्लेख

लोक परंपरा के मुताबिक छत्तीसगढ़ के पारंपरिक त्योहार के रूप में, पौष महीने की पूर्णिमा को छेरछेरा पुन्नी तिहार मनाया जाता है. बाबू रेवाराम की पांडुलिपि में उल्लेख है कि छत्तीसगढ़ में कलचुरी वंश के कोसल नरेश कल्याण साय और मंडल के राजा के बीच विवाद हो गया था. जिसके चलते तत्कालीन मुगल सम्राट अकबर ने उन्हें दिल्ली बुला लिया था. जहां 8 साल राजा कल्याण साय दिल्ली में रहे. वहां उन्होंने राजनीति और युद्धकाल की शिक्षा ली और वापस अपनी राजधानी रतनपुर लौटे. जब उनकी प्रजा को इस बात की जानकारी हुई, वे अपने राजा से मिलने रतनपुर पहुंचने लगे. अपने राजा के प्रति प्रजा के इस प्रेम को देखकर उनकी रानी फुलकेना ने प्रजा के लिए अपनी तिजोरी खोल दी और खुले मन से जी भरकर दान किया.

Last Updated : Jan 28, 2021, 7:51 PM IST

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