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लव-कुश की जन्मस्थली मानी जाती है छत्तीसगढ़ की ये जगह

लव कुश की जन्मभूमि और वाल्मीकि आश्रम तुरतुरिया धाम को राम वन गमन पथ में शामिल किया गया है. कथाओं के अनुसार तुरतुरिया स्थित वाल्मीकि आश्रम में भगवान राम और देवी सीता के पुत्र लव और कुश ने जन्म लिया था. रामचरित मानस में भी इसका उल्लेख मिलता है.

Love Kush birthplace and Valmiki Ashram Turturiya Dham OF Balodabazar have been included in Ram Van Gaman Path
लव कुश की जन्मभूमि और वाल्मीकि आश्रम तुरतुरिया धाम

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Published : Dec 29, 2020, 3:18 PM IST

Updated : Jan 4, 2021, 8:02 PM IST

बलौदाबाजार:राम वन गमन पथ में शामिल स्थलों के विकास के लिए प्रथम चरण में कसडोल तहसील के तुरतुरिया को शामिल किया है. कहते हैं कि तुरतुरिया स्थित वाल्मीकि आश्रम में भगवान श्रीराम के पुत्र लव और कुश की जन्मस्थली है. आश्रम में लव-कुश की प्रतिमा है, जो खुदाई के दौरान मिली थी. मूर्ति में लव-कुश घोड़े को पकड़े हुए हैं. लोग इसे अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा मानते हैं. और प्रतिमाओं को माता सीता और भगवान राम के प्रवास का प्रमाण.

तुरतुरिया धाम में पड़े थे राम सीता और लवकुश के कदम

आज भी प्रचलित नाम है लव-कुश की नगरी

तुरतुरिया धाम

छत्तीसगढ़ को माता कौशल्या का मायका और प्रभु श्री राम का ननिहाल भी कहा जाता है. बलौदाबाजार जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी दूर पथरीले रास्तों से जाते हुए घने जंगलों के बीच प्रकृति की गोद में तुरतुरिया है. जहां वाल्मिकी आश्रम आज भी देखने को मिलता है. तुरतुरिया को लेकर जनश्रुति है कि यहां माता सीता ने लव और कुश को जन्म दिया था. जिससे लव से लवन और कुश से कसडोल नगर का नाम पड़ा. आज भी कसडोल और लवन नगर को लव-कुश की नगरी के नाम से जाना जाता है.

महर्षि वाल्मीकि आश्रम, लवकुश की जन्मस्थली

मातागढ़ का मंदिर

यह स्थान रामचरित मानस में भी (त्रेतायुग) जिक्र है कि लव-कुश की मूर्ति वाल्मीकि आश्रम में आज भी हैं. जिसमें लव-कुश की एक मूर्ति घोड़े को पकड़े हुए है. ये मूर्ति यहां खुदाई के दौरान मिली है. मंदिर के पुजारी पंडित रामबालक दास के अनुसार लव-कुश जिस घोड़े को पकड़े हैं, वह अश्वमेघ यज्ञ का घोड़ा है. ये मूर्तियां ही भगवान राम एवं सीता के यहां प्रवास का प्रमाण माना जाता है. तुरतुरिया में मंदिर के पास ही एक विशाल नदी है. इस नदी को बलमदेही नदी के रूप में जाना जाता है. जानकारों के अनुसार यहां कोई कुंआरी कन्या यदि वर की कामना करती है तो उसे अच्छा वर शीघ्र ही मिल जाता है. इसकी इसी चमत्कारिक खासियत के कारण इसका नाम बलमदेही (बालम=पति, देहि=देने वाला) पड़ा.

तुरतुरिया नाम पड़ने की कथा

इस पर्यटन स्थल का नाम तुरतुरिया पड़ने के पीछे भी एक कहानी बताई जाती है. ग्रामीण बताते हैं कि 200 वर्ष पहले उत्तर प्रदेश के एक संत कलचुरी कालीन राजधानी माने जाने वाले स्थल पहुंचे. घने जंगलों और पहाड़ों से घिरे स्थल पर लगातार पानी की धार बहती रहती थी, जिससे तुर-तुर की आवाज निकलती थी. बताया जाता है कि इसी तुर-तुर की आवाजों के कारण संत ने इस स्थान का नाम तुरतुरिया रख दिया.

प्राचीन में बौद्ध संस्कृति का केंद्र रहा होगा तुरतुरिया !

तुरतुरिया धाम को राम वन गमन पथ में शामिल किया गया

इस स्थल पर बौद्ध, वैष्णव और शैव धर्म से संबंधित मूर्तियों का पाया जाना भी इस तथ्य को बल देता है कि यहां कभी इन तीनों संप्रदायों की मिलीजुली संस्कृति रही होगी. ऐसा माना जाता है कि यहां बौद्ध विहार थे, जिनमें बौद्ध साधकों का निवास था. सिरपुर के समीप होने के कारण इस बात को अधिक बल मिलता है कि यह स्थल कभी बौद्ध संस्कृति का केंद्र रहा होगा.

तीन दिवस का लगता है विशाल मेला
यहां से प्राप्त शिलालेखों की लिपि से ऐसा अनुमान लगाया गया है कि यहां से प्राप्त प्रतिमाओं का समय 8वीं-9वीं शताब्दी है. हर साल पूस माह में यहां तीन दिवसीय मेला लगता है. जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं. धार्मिक एवं पुरातात्विक स्थल होने के साथ-साथ अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण भी यह स्थल पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है.

राम वनगमन पथ के तहत होगा विकास

छत्तीसगढ़ सरकार ने राम वन गमन पथ के लिए तुरतुरिया को शामिल किया है. जिसमें मुख्य रूप से मंदिर और मातागढ़ के बीच स्थित बालमदेही नदी पर एनीकट निर्माण प्रस्तावित किया गया है. एनीकट निर्माण से साल भर मातागढ़ तक आना-जाना संभव हो सकेगा. मातागढ़ को बाहर से सड़क मार्ग से जोड़ा जाएगा. नवरात्रि के दिनों में मुख्य मार्ग पर अत्यधिक भीड़ को देखते हुए तुरतुरिया पहुंचने के लिए बोरसी-खुड़मुड़ी का वैकल्पिक मार्ग विकसित करने का सुझाव आया है.

पर्यटकों को मिलेंगी सुविधाएं

मेले के समय आने वाले श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए वॉशरूम, पेयजल सुविधा, सोलर सिस्टम से प्रकाश सुविधा, सभी दिशाओं में वाहन पार्किंग और दुकानदारों के लिए पक्के चबूतरे के लिए जगह चुन ली गई है. गोमुख से लगातार प्रवाहित जल का उपयोग कर सुंदर गार्डन विकसित करने का निर्णय लिया गया. पर्यटकों और श्रद्धालुओं के रुकने के स्थान को और सुंदर बनाने और इसकी सुरक्षा दीवार बनाने का प्रस्ताव भी आया है.

Last Updated : Jan 4, 2021, 8:02 PM IST

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