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माता कौशल्या ही नहीं छत्तीसगढ़ में ही जन्मे थे लव और कुश !

दक्षिण कौशल माता कौशल्या के नाम से जाना है. लेकिन उनके पोते लव और कुश का जन्म भी छत्तीसगढ़ में हुआ है. इतिहास की ये बात त्रेतायुग के उन पन्नों को पलटाती है, जो काफी दिनों से बंद थे.

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Published : Nov 15, 2019, 2:40 PM IST

माता कौशल्या ही नहीं छत्तीसगढ़ में ही जन्मे थे लव और कुश

बलौदा बाजार: छत्तीसगढ़ को भगवान राम का ननिहाल कहा जाता है. कहते हैं कि वनवास के दौरान कई वर्ष श्रीराम ने यहां बिताए थे. इसके कई प्रमाण भी मिलते हैं. छत्तीसगढ़ में ही माता कौशल्या का इकलौता मंदिर भी है. जहां लोगों की आस्था ये कहती है कि चंद्रखुरी में माता कौशल्या का मंदिर है, वहीं मान्यता है कि भगवान राम के पुत्र लव और कुश का जन्म तुरतुरिया में हुआ था.

स्पेशल पैकेज

छत्तीसगढ़ के इतिहास में आपने राम के वनवास से लेकर दंडकारण्य के जंगल और दक्षिण कौशल की कहानी सुनी होगी, लेकिन लव-कुश से जुड़े इतिहास से आज हम आपको रू-ब-रू कराएंगे. बलादौबाजार के कसडोल का एक अध्याय लव कुश के जन्म से जुड़ा है. ऐसी मान्यता है कि राम और सीता के पुत्र लव-कुश का जन्म तुरतुरिया में हुआ था. इस कारण लव के नाम से लवन और कुश के नाम से कसडोल नगरी को जाना जाने लगा है.

यहीं था महर्षि वाल्मीकि का आश्रम !
आपको त्रेतायुग में ले चलते हैं. कसडोल से 22 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी पर स्थित है तुरतुरिया. तुरतुरिया प्राकृतिक और धार्मिक स्थल है, जो हरे-भरे जंगलों से घिरा हुआ है. कहते हैं कि त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यहीं पर था और माता-सीता ने यहीं पर लव और कुश को जन्म दिया था.

तुरतुरिया में लव और कुश के जन्म होने की वजह से ही लव से लवन और कुश से कसडोल नगर का नाम पड़ा. इसी लिए लवन को लव की नगरी और कसडोल को कुश की नगरी कहा जाता है. महर्षि वाल्मीकि आश्रम में अश्वमेघ से युद्ध करते लव-कुश की प्रतिमा भी स्थापित है. साथ ही मातागढ़ मंदिर में सीता माता की प्रतिमा स्थापित है.

दूर-दूर से आती हैं महिलाएं
मातागढ़ तुरतुरिया में सबसे प्रसिद्ध मान्यता यही है कि यहां संतान की मन्नत लिए महिलाएं दूर-दूर से आती हैं. यहां दर्शन मात्रा से महिलाओं को मां बनने का सुख प्राप्त होता है.

तुरतुरिया नाम से जुड़ा भी एक बेहद रोचक इतिहास है. ऐसी मान्यता है कि लागातर पानी की एक पतली धारा गौ मुख से लगातार बहती रहती है, जिसकी तुरतुर आवाज के कारण इस जगह का नाम तुरतुरिया पड़ा. कहते हैं यहां चैत्र और शारदीय नवरात्र के दौरान मनोकामना ज्योत जलाने से हर मनोकामना पूरी होती है.

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