बलौदाबाजार: जिले के भाटापारा के किरवई गांव के किसानों के रातों की नींद उड़ गई है. इसकी वजह ये है कि लगभग 70 फीसदी धान की फसल खराब हो चुकी है. पीड़ित किसानों का कहना है कि हर साल की तरह इस साल भी दामाखेड़ा सोसायटी से प्रमाणित बीज लेकर फसल की बोआई की थी, लेकिन जैसे-जैसे धान के पौधे बड़े होते गए, उसमें करगा (जंगली धान) की मात्रा ज्यादा और धान की मात्रा कम दिखने लगी.
इसे कहते हैं 'करगा'
- बोआई के समय एक खेत में एक ही प्रजाति के धान के बीजों की बोआई की जाती है, लेकिन एक समान दिखने वाले ये बीज उगने के बाद अलग प्रजाति के हो जाते हैं और फसल पकने के समय धान में चमक होने की जगह कालापन आ जाता है.
- साथ ही इन फसलों के दानों में मिंजाई के बाद भी बीजों में काटानुमा डाल लगा होता है, जिसे आम भाषा मे 'सुंघा' कहा जाता है.
- यह 'करगा' धान पकने के बाद भी इसकी बालियां अपने आप ही खेत में झड़ने लगती है और कम से कम पांच सालों तक खेती के समय अपने आप ही खेत में उगकर अच्छे किस्म के फसलों को बर्बाद कर देती हैं.
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि यह 'करगा' किसानों के लिए एक तरह से किसी कचरे की तरह ही है, जो न तो किसी कीटनाशक से खत्म होता है न किसी खाद से. इसके उगने से सीधा नुकसान किसानों की जेब पर पड़ता है और सालभर की इनकी मेहनत पानी में चली जाती है.