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मातागढ़ तुरतुरिया में दान की गिनती पर जनपद सदस्य ने जताई आपत्ति - जनपद सदस्य ने जताई आपत्ति

कसडोल जनपद पंचायत में रविवार को दानपेटी के रकम की गिनती की गई. इस पर जनपद सदस्य ने आपत्ति जताई. जिसके बाद गिनती बंद कर दी गई.

janpad member objected on donation counting
दान की गिनती

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Published : Feb 8, 2021, 12:34 AM IST

बलौदाबाजार: मातागढ़ तुरतुरिया में दान पेटी के रकम की गिनती रविवार को कसडोल जनपद पंचायत में गुपचुप तरीके से की जा रही थी. सूचना मिलते ही कसडोल जनपद पंचायत सदस्य सिद्धान्त मिश्रा तत्काल जनपद पंचायत कार्याल पहुंचे और गिनती पर आपत्ति दर्ज कराई. जिसके बाद दान की रकम को वापस दान पेटी में डालकर गिनती बंद कर दी गई.

दान की गिनती पर आपत्ति

कसडोल जनपद पंचायत हर साल पौष पूर्णिमा के दिन मातागढ़ तुरतुरिया में तीन दिवसीय विशाल मेले का आयोजन करता है. जहां छत्तीसगढ़ के कोने-कोने से श्रद्धालु मेला में पहुंचते हैं. इस दौरान श्रद्धालुओं से लाखों रुपये का दान आता है.

यहां हुआ था लव कुश का जन्म

कसडोल जनपद पंचायत के अंतर्गत मातागढ़ तुरतुरिया का मंदिर स्थित है. मान्यताओं के अनुसार माता सीता ने लव और कुश को यहीं पर जन्म दिया था. पहाड़ में मातागढ़ तुरतुरिया सन्तानदात्री के रूप में विराजमान है. हर साल मातागढ़ तुरतुरिया में पौष पूर्णिमा में तीन दिवसीय विशाल मेला लगता है. मंदिर में आस्था स्वरूप लाखों रुपयों का दान नकद और सोने चांदी के रूप में किया जाता है.

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दान की राशि और उपयोग का नहीं है हिसाब किताब

जनपद पंचायत दान का इस्तेमाल कब. कहां और कितना करती है, इसकी जानकारी अबतक सार्वजनिक नहीं की गई है. कसडोल जनपद पंचायत सदस्य सिद्धान्त मिश्रा ने आरोप लगाया कि मंदिर में चढ़े दान का उपयोग मंदिर के लिए नहीं किया जा रहा है. इतना ही नहीं दान पेटी को मंदिर से लाने और दान पेटी को खोलने के समय पंचनामा नहीं कराया गया था.

दान की गिनती

गिनती के दौरान नहीं ते कोई जनपद सदस्य

कसडोल जनपद पंचायत सीईओ के द्वारा दान के रकम की गिनती करने के लिए कर्मचारियों को निर्देशित किया गया था. कसडोल जनपद अध्यक्ष गौरीदेवी सिंह, उपाध्यक्ष के अलावा कुछ जनपद सदस्यों को इसकी जानकारी दी गई थी. लेकिन गिनती के समय कोई भी मौजूद नहीं था

27 से 29 जनवरी तक हुआ था मेले का आयोजन

मातागढ़ तुरतुरिया मंदिर में 27 से लेकर 29 जनवरी तक मेले का आयोजन किया गया था. जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु 3 दिनों के भीतर मातागढ़ तुरतुरिया पहुंचे थे.

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