बलौदाबाजार: छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार में महानदी के तट पर प्राचीन और धार्मिक महत्व का स्थल है. ग्राम नारायणपुर में 10वीं सदी का प्राचीन शिव मंदिर स्थित है. 10वीं शताब्दी में निर्मित छत्तीसगढ़ का एकमात्र पूर्वाभिमुखी शिवलिंग, जिसे देखने दूर-दूर से लोग पहुंच रहे हैं. इस मंदिर की दीवारों पर अद्भुत कलाकृति देखने को मिलती है.
बलुआ पत्थर से निर्मित ऐतिहासिक भव्य शिव मंदिर की दीवारों में लगे पत्थरों पर उकेरी गई मूर्तियां पाषाण काल का अद्भुत उदाहरण है. मंदिर की दीवारों में मैथुन कला की मूर्तियां हैं, जो भोरमदेव और खजुराहो की मूर्तियों की याद दिलाती हैं. पुरातत्व विभाग ने इसका अधिग्रहण कर मूर्तियों को संग्रहित कर एक कोने में कमरा बनाकर रखा है. स्थानीय स्तर पर प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तक तीन दिवसीय मेले का आयोजन होता है.
10-11वीं शताब्दी का है मंदिर
नारायणपुर के इस प्राचीन शिव मंदिर के 10वीं-11वीं शताब्दी में निर्मित होने का अनुमान लगाया जाता है. क्योंकि खरौद में पाए गए शिलालेख (1181 ई.) के अनुसार है. हयवंशीय राजाओं ने यहां पर एक भव्य उद्यान का निर्माण कराया था.
पढ़ें-कोरिया का जटाशंकर धाम, जहां दुर्गम रास्तों से जाकर भक्त करते हैं भोलेनाथ के दर्शन
रात के समय किया गया मंदिर का निर्माण कार्य
ग्राम नारायणपुर और आसपास के बड़े बुजुर्गों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण रात के समय किया गया और निर्माण कार्य लगभग 6 महीने तक लगातार चला. इस मंदिर के निर्माणकर्ता प्रधान शिल्पी का नाम ग्रामीण नारायण बताते हैं, जो जनजाति समुदाय का था. उसी के नाम इस गांव का नामकरण भी किया गया.
मंदिर में कलश नहीं लग पाया
किसी भी हिन्दू देवालय और मंदिर की पूर्णता तभी मानी जाती है जब उसके कंगूरे पर कलश स्थापित हो जाए, लेकिन इस मामले में नारायणपुर का प्राचीन शिव मंदिर अलग है, क्योंकि इस मंदिर के कंगूरे में कलश स्थापित नहीं हो पाया था. कुछ समय पहले ही इस प्राचीन शिव मंदिर के कंगूरे में कलश स्थापित कर पूजा-पाठ शुरू किया गया, लेकिन आज भी शिव मंदिर के ठीक बगल में एक और मंदिर है. जहां किसी भी मूर्ति की स्थापना नहीं हो पाई और न ही कलश की स्थापना की गई है. मान्यता यह है कि यह मंदिर अधूरा है, क्योंकि इस मंदिर को बनाने से पहले ही शिल्पकार की मृत्यु हो गई थी.
नारायणपुर मंदिर की कथा