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Special: दो वक्त की रोटी के लिए जान की बाजी लगा देती हैं ये महिलाएं

पेट और भूख के कारण इंसान अपनी जान हथेली पर लिए वो हर काम करने को तैयार हो जाता है जिसमें कई खतरे हो लेकिन तब तक हार नहीं मानता जब तक वो उस चीज को हासिल नहीं कर लेता. ऐसी ही कहानी गांव की महिलाओं की है, जो अपनी जीविका चलाने के लिए जिंदगी की जंग लड़ रही हैं.

नदी के सहारे लकड़ी ले जाती महिलाएं

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Published : Oct 16, 2019, 2:54 PM IST

Updated : Oct 16, 2019, 3:55 PM IST

बालोद : डर जाने से राह नहीं मिलती, बिन मेहनत भूख नहीं मिटती, संघर्ष है तो खाना है, वरना भूखे ही सो जाना है. ऐसा ही कुछ हाल ग्राम आंवराटोला-सिवनी के ग्रामीणों का है, जो रोटी के दो निवाले के लिए मौत को मात देकर जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं. ये ग्रामीण नदी में तैर कर लकड़ी लाते हैं और तब जाकर इनके घर का दो टाइम का चूल्हा-चौका जलता है. यहां न सरकारी योजनाएं इनकी मदद कर पा रही हैं न यहां के विधायक, मंत्री और अधिकारी.

नदी के सहारे लकड़ी ले जाती महिलाएं

दो वक्त की रोटी इकट्ठा करने के लिए महिलाएं एक महीने में तीन दिन जान जोखिम में डालकर उफनती नदियों को पारकर जंगल से लकड़ियां लाती हैं.

दो वक्त के निवाले की जंग

जब हमने इन महिलाओं से पूछा ऐसा करने के पीछे की वजह क्या है, तो उन्होंने इसकी वजह खाने को बताया. उन्होनें कहा कि, 'अगर डर जाएंगे तो जियेंगे कैसे. 3 दिन में जो हम लकड़ियां एकत्रित करते हैं उन्हीं से हमारा महीने भर का चूल्हा जलता है'.

वहीं प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना से मिलने वाले लाभ पर महिलाओं का कहना है कि, 'गैस सिलेंडर तो दिया गया, लेकिन गैस भरवाने के लिए पैसे नहीं है. सवाल ये है कि सरकार ने साधन तो दे दिए, लेकिन जीविका चलाने के लिए पैसे कहां से आएंग'. जरूरत है इनकी आर्थिक मदद की ताकि इनका बोझ कम हो सके.

Last Updated : Oct 16, 2019, 3:55 PM IST

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