बालोद:छत्तीसगढ़ में बालोद को पानी के कारण जाना जाता है. बालोद को 'पानी बैंक' का दर्जा मिला हुआ है. बालोद से प्रदेश के कई जिलों में पानी भेजा जाता है. जीवनदायिनी तांदुला जलाशय ने बालोद को पहचान दिलाई है. जलाशय का पानी शहरों, कस्बों और गांवों में नहरों के माध्यम से बहता है. दुर्ग, भिलाई और बेमेतरा जैसे क्षेत्रों को सिंचित करता है, बावजूद इसके बालोद के लोग साफ पानी के लिए तरस रहे हैं.
पढ़ें: SPECIAL: धान के रकबा क्षेत्र में शक्कर कारखाना ! नहीं मिल रहा कच्चा माल
तांदुला जलाशय से ग्रामीण इलाकों में नहरों के माध्यम से पानी पहुंचाया जाता है. जल संसाधन विभाग की लापरवाही के कारण लोग पानी के लिए मोहताज हो रहे हैं. नहरों में गंदगी पसरी हुई है. जब नहरें कंक्रीट की नहीं थीं, तब नहरों की सफाई की जाती थी. जब से नहरों को कंक्रीट का किया गया, तब से इसमें कूड़ा-करकट भर गया है. आसपास के लोगों का कहना है कि पहले नहर के पानी को पीने के लिए भी उपयोग करते थे, लेकिन अब हालात ऐसे हो गए हैं कि नहाना भी मुश्किल हो रहा है. गंदगी से नहर पटी हुई है.
पढ़ें: मुश्किल राहों को पार कर डॉक्टर बनने की राह पर किसान की बेटी, परिवार ने कहा- गर्व है
पेयजल और निस्तारी लोगों की परेशानी
ग्रामीणों ने बताया कि पेयजल और निस्तारी लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गई है. नहरें दूषित हो चली हैं. जल संसाधन विभाग साफ-सफाई कराने का दावा करता है, लेकिन अधिकारी झांकने तक नहीं आते हैं. धरातल में सारे दावे खोखले साबित हो रहे हैं.
कभी जल के नाम से समृद्ध हुआ करता था बालोद
बालोद में भले ही आज पानी की समस्या हो, लेकिन यहां प्राकृतिक जल स्रोतों सहित कृत्रिम जल स्रोतों की विस्तृत व्यवस्था थी. नहरों से बहने वाले पानी को पेयजल के रूप में उपयोग किया जाता था. शादी-ब्याह और मांगलिक कार्यों में पेयजल के लिए इसका उपयोग किया जाता था. आज सभी नहरें मैली हो गई हैं. प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है. सफाई के नाम पर केवल खानापूर्ति कर दी जाती है. स्थानीय लोगों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
बालोद जिले में सबसे बड़ी नहर तांदुला जलाशय से निकलती है, जो भिलाई इस्पात संयंत्र को जाती है. नहर बेमेतरा क्षेत्रों को भी सिंचित करती है.