बालोद : जहां एक ओर देश मे शहरों को विकास को गति देने के लिए स्मार्ट सिटी जैसी योजनाएं चल रही हैं. तो वही गांव का विकास मानो रूक सा गया है. गांवों की बदहाली की न जाने कितनी कहानी आपने सुनी होगी, आज हम आपको एक ऐसी बस्ती के बारे में बता रहे हैं, जो आजादी के 72 साल बाद भी विकास की राह में कोसों दूर है.
यहां रह रहे लोग रोज कीचड़ से जद्दोजहद कर अपने घर पहुंचते हैं. सोचने वाली बात यह की रास्ते के नाम पर गांववालों के पास एक मात्र यही विकल्प है. न चाहकर भी उन्हें इस बदतर मार्ग से होकर गुजरना पड़ता है.
परेशानियों का यह सिलसिला आज से नहीं बल्कि लंबे अरसे से चल रहा है. मानव जीवन की सबसे मूलभूत जरूरत पानी की यहां लगातार कमी बनी हुई है. एक बार किसी तरह यहां हैंडपंप लगाया गया, लेकिन इसके बाद भी समस्याओं का हल नहीं हो सका. हैंडपंप से निकलने वाला पानी न तो पीने लायक है और न ही इसका इस्तेमाल किसी और काम में किया जा सकता है. आलम यह है कि, यहां रह रहे लोगों को बरसात के दिनों मे ही गर्मी की चिंता खाए जा रही है.