बालोद:आधुनिकता के इस दौर में बालोद जिले के डौंडी ब्लॉक का सुखड़ीगहन गांव आजादी के 75 सालों बाद भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहा है. यह गांव काफी पिछड़ा है. रोड क्या होती है. अब तक यहां रहने वाले लोगों ने नहीं देखी है. बूंद-बूंद पानी के लिए लोग तरस रहे हैं. वहीं रोजगार के कोई साधन यहां नहीं है.
आधुनिक युग में पिछड़ी जिंदगी जी रहा बालोद जिले का ये गांंव नल है, लेकिन पानी नहीं
सुखड़ीगहन गांव में नल तो है, लेकिन उसमें पानी नहीं आता. 1 किलोमीटर दूर एक कुएं के भरोसे पूरा गांव है. ग्रामीणों ने बताया कि कभी- कभी हफ्ते भर बिना नहाए रहना पड़ता है. सिर्फ पानी ही नहीं बिजली की भी समस्या है. गांव में दो-दो दिन लाइट भी नहीं रहती.
हैंडपंप में लाल पानी की समस्या
आधुनिक युग में पिछड़ी जिंदगी जी रहा बालोद जिले का यह गांंव गर्मी के आने के साथ ही गांव में वाटर लेवल नीचे जा रहा है. जिससे गांव में पानी का संकट खड़ा हो गया है. पीने तक का पानी नहीं मिल पा रहा है. वहीं मवेशी पानी के लिए भटक रहे हैं. गांव में एक हैंडपंप है, लेकिन उसका पानी भी इतना दूषित है कि बर्तन में रखते ही पूरा पानी लाल हो जाता है. इस पानी को पीने से लोग गंभीर बीमारियों से ग्रसित हो रहे हैं.
आधुनिक युग में पिछड़ी जिंदगी जी रहा बालोद जिले का यह गांंव मंत्री अनिला भेड़िया के गृह जिले बालोद में आंगनबाड़ी केंद्रों में मूलभूत सुविधाओं की कमी !
विकास के मॉडल से कोसों दूर गांव
गांव के समीप एक नाला गुजरता है. वह भी सूखा रहता है. सबसे ज्यादा समस्या ग्रामीणों को निस्तारी और पेयजल की है. जिस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है. इस गांव के लोग खुद को काफी पिछड़ा हुआ महसूस कर रहे हैं. इनका जीवन संघर्ष से भरा हुआ है. गांव में ना ही सड़क है ना ही नालियां. विकास के मॉडल से इनका गांव कोसों दूर है.
आधुनिक युग में पिछड़ी जिंदगी जी रहा बालोद जिले का यह गांंव वनोपज पर आश्रित परिवार
इस गांव में रहने वाले परिवारों का जीवन वनोपज पर आश्रित है. सूखी घांस, तेंदूपत्ता, बांस को तोड़कर ग्रामीण इसे शहर में बेचते हैं. इसी से इनका घर चलता है. वहीं घर पर बांस से बनी चीजें बनाते हैं. उसे बेचकर अपना जीवन यापन करते हैं. डौंडी ब्लॉक में आने वाला यह गांव प्रदेश की महिला एवं बाल विकास मंत्री अनिला भेड़िया का विधानसभा क्षेत्र है. ग्रामीणों का कहना है कि अपनी समस्याओं को लेकर वे शासन-प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाते थक गए हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है.
आधुनिक युग में पिछड़ी जिंदगी जी रहा बालोद जिले का यह गांंव