बालोद :होली से पहले होलिका दहन की परंपरा पूरे देश में सदियों से प्रचलित है. लेकिन छत्तीसगढ़ के बालोद जिले के 3 गांव में दशकों से होलिका नहीं जलाई जाती. हां, त्योहार के दिन ग्रामीण सूखी होली खेलकर एक-दूसरे को बधाई जरूर देते हैं.
तीन गांवों में होलिका नहीं जलाने के पीछे की यह है कहानी...
बालोद जिला मुख्यालय से सटे ग्राम झलमला का छत्तीसगढ़ में एक अलग ही महत्व है. यहां मां गंगा निवास करती हैं. गांव में वर्षों से होलिका नहीं जलाई जाती. इसके पीछे ग्रामीणों का तर्क है कि अगर होलिका दहन की जाती है तो गांव में कुछ-न-कुछ अनहोनी हो जाती है. काफी नुकसान झेलना पड़ता है. इसलिए दशकों से यहां होलिका नहीं जलाई जाती.
होलिका जलाते बरसने लगते थे आग के गोले...गुरूर विकासखंड के सोहपुर गांव में भी बीते 150 सालों से होलिका दहन नहीं किया गया है. यहां के ग्रामीणों का कहना है कि सालों पहले जब भी होलिका दहन किया जाता था तो गांव में आग के गोले बरसने लगते थे. किसी-न-किसी के घर आगजनी की घटना होती थी. ऐसे में गांव के बुजुर्गों ने गांव में होलिका दहन की परंपरा समाप्त करने का फैसला लिया. तब से लेकर आज तक सोहपुर में होलिका नहीं जलाई गई.
हैजे के कारण मरने लगे थे बच्चे...गुंडरदेही ब्लॉक के ग्राम चंदनबिरही में भी 9 दशकों से होलिका नहीं जली है. ग्रामीणों का कहना है कि गांव में हैजा के कारण यहां होलिका नहीं जलाई जाती. सालों पहले हैजे के कारण गांव में बच्चे मर रहे थे. ग्रामीणों के मुताबिक बात साल 1925 से पहले की है. यहां की महिलाओं को गर्भवती होने पर बाहर भेजने लगे. जब वे वापस आती थीं तो फिर से बच्चे मरने लगते थे. तब चंदनबिरही के जमींदार और राजा निहाल सिंह ने गांव में होली खेलना और होलिका जलाना बंद करा दिया. इसके बाद सबकुछ ठीक हो गया, तभी से यह परंपरा यहां निभाई जा रही है.