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अंग्रेजों से जुड़ी गंगा मइया मंदिर की कहानी, तालाब से निकली मूर्ति कहलाई मां गंगा - शारदीय नवरात्र

बालोद जिले में स्थित मां गंगा मइया मंदिर काफी प्राचीन है. इस मंदिर का इतिहास अंग्रेजों के शासनकाल से जुड़ा है. वहीं इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं भी हैं. जो इस मंदिर को खास बनाती है.

Maa Ganga Maiya Temple in Balod
मां गंगा मइया मंदिर

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Published : Oct 24, 2020, 6:34 PM IST

Updated : Oct 24, 2020, 8:55 PM IST

बालोद: जिले के मां गंगा मइया मंदिर में हर नवरात्र में प्रदेशभर के लाखों भक्त माता के दर्शन करने आते हैं. लेकिन इस साल कोरोना संक्रमण को देखते हुए नवरात्रि के लिए प्रशासन ने सख्त गाइडलाइन जारी किया है. जिसके कारण मां गंगा मइया मंदिर में केवल मंदिर ट्रस्ट के सदस्य और पुजारी ही मंदिर में पूजा अर्चाना कर रहे हैं. मंदिर में भक्तों का प्रवेश पूरी तरह से वर्जित कर दिया गया है.

मां गंगा मइया मंदिर का इतिहास

नवरात्र में मां गंगा मइया मंदिर में विशाल मेला लगता था. वह मेला भी इस साल प्रतिबंधित रहा. मंदिर परिसर में कुछ दुकानें हैं जहां के व्यापारी नारियल अगरबत्ती बेचकर अपना जीविकोपार्जन करते थे. लेकिन कोरोना के इस संकट काल में उन्हें भी इस बार व्यापार करने का अवसर नहीं मिला. मां गंगा मइया का दरबार इस नवरात्र सूना रहा. नवरात्र में माता के भक्तों को मां के दर्शन नहीं हो पाए. मंदिर में इस बार 851 ज्योति कलश प्रज्वलित किए गए हैं.

मंदिर में स्थापित मां गंगा मइया की प्रतिमा

रोचक है मंदिर का इतिहास

मां गंगा मइया मंदिर की कहानी आज से करीब 130 साल पुरानी है. उस दौरान बालोद जिले की जीवनदायिनी तांदुला नदी के नहर का निर्माण चल रहा था. उस समय झलमला गांव की आबादी महज 100 के आसपास थी. सोमवार के दिन यहां बाजार लगा करता था. जहां दूरस्थ अंचलों से पशुओं के विशाल समूह के साथ हजारो लोग आया करते थे. यहां पशुओं की अधिकता से पानी की कमी महसूस की जाने लगी. पानी की कमी को पूरा करने के लिए तालाब बनाने के लिए डबरी की खुदाई की गई. जिसे बांधा तालाब का नाम दिया गया. मां गंगा मइया की कहानी इसी तालाब से शुरू होती है. वर्तमान में जिस जगह पर देवी की प्रतिमा स्थापित है वहां पहले तालाब हुआ करता था. जहां पर पानी भरा रहता था.

मां गंगा मइया मंदिर

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माता ने सपने में दिया दर्शन

मान्यता के मुताबिक एक दिन सिवनी गांव का एक केवट मछली पकड़ने के लिए बांधा तालाब गया हुआ था. तब जाल में मछली की जगह पत्थर की प्रतिमा फंस गई. केवट ने अज्ञानता वश उसे साधारण पत्थर समझकर फिर से उसे तालाब में फेंक दिया. इसके बाद गांव के गोड़ जाति के बैगा को माता ने सपने में आकर कहा कि मैं जल के अंदर पड़ी हुई हूं, मुझे जल्दी से निकालकर प्राण प्रतिष्ठा कराओ. सपना आने की जानकारी बैगा ने मालगुजार और गांव के अन्य लोगों को दी. जिसके बाद फिर से तालाब में जाल फेंका गया और वही प्रतिमा दोबारा मिली.

मूर्ति हटाने की कोशिश

बताया जाता है कि गांव में नहर निर्माण के दौरान गंगा मइया की प्रतिमा को वहां से हटाने के लिए अंग्रेजों ने बहुत प्रयास किया. अंग्रेज एडम स्मिथ की काफी कोशिशों के बाद भी इस प्रतिमा को हटाया नहीं जा सका.

मुंडन संस्कार की है मान्यता

प्रदेश के कोने-कोने से लोग यहां मुंडन संस्कार कराने भी आते हैं. नवरात्रि में यहां मुंडन संस्कार के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है. मां गंगा मइया मंदिर के साथ ही ज्योति कलश दर्शन के लिए भी यहां एक विशेष ज्योति दर्शन स्थल बना हुआ है. जहां भक्त ज्योत का दर्शन करते हैं.

Last Updated : Oct 24, 2020, 8:55 PM IST

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