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Maa Bahadur Kalarin: बहादुर कलारिन जिसने स्त्रियों के साथ हुए अन्याय के बदले बेटे की दी बलि - Maa Bahadur Kalarin

मां बहादुर कलारिन का नाम पूरे छत्तीसगढ़ में देवी के रूप में लिया जाता है. मां कलारिन पूरे छत्तीसगढ़ के साथ कलार समाज के पौराणिक इतिहास का हिस्सा हैं. साथ ही छत्तीसगढ़ के इतिहास में उनका नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है. छत्तीसगढ़ की लोककथाओं में मां बहादुर कलारिन के किस्से सुनने को मिल जाते हैं.

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मां कलारिन की कहानी

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Published : Jan 12, 2023, 1:18 PM IST

मां कलारिन की कहानी

बालोद :छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिले से 26 किलोमीटर दूर चिरचारी और सोरर गांव के सरहद में मां बहादुर कलारिन का स्मारक और मंदिर स्थित है.इस स्थान को छत्तीसगढ़ पुरातत्व विभाग ने संरक्षित करके रखा है.लेकिन मौजूदा स्थिति को देखने पर पता चलता है कि जिस स्थान को संरक्षित करने का दावा किया जा रहा है वो उपेक्षा का शिकार है. मां बहादुर कलारिन के नाम से राज्य अलंकरण की घोषणा भी प्रदेश सरकार ने की है. लेकिन जिस जगह यह माची है उसका संरक्षण कहीं ना कहीं उपेक्षित है. यहां पर जो मेला लगता है वह भी कुछ वर्षों से बंद है .आसपास के लोगों ने बताया कि माची के देखरेख के लिए एक कर्मचारी की नियुक्ति की गई है. जो कभी-कभी यहां आता है. असामाजिक तत्वों ने इसके पत्थरों को गिरा दिया था. जिससे पुरातन स्मारक पर खतरा मंडरा रहा है.

माची के नीचे सोना दबा होने की किवदंती :आसपास के लोगों का कहना है कि '' जिस जगह माची बनी हुई है. उसके नीचे करोड़ों रुपए का सोना दबा हुआ है लेकिन इस दावे में कितनी सच्चाई है ये कोई नहीं जानता.स्थानीय लोग ये चाहते हैं कि जिन बातों को वो पीढ़ियों से सुनते आ रहे हैं उसमें कितनी सच्चाई है इस बात का पता सरकार को लगाना चाहिए. सरकार और पुरातत्वविदों को शोध करके इन बातों की सच्चाई को सामने लाना चाहिए.ताकि मां बहादुर कलारिन की वास्तविकता से जुड़े रहस्य लोगों के सामने आ सकें.''


नारी उत्थान के लिए करती थी काम :मां बहादुर कलारिन को लेकर कई सारी बातें प्रचलित हैं . हमने जब ग्राम सोरर के लोगों से मुलाकात की तो चूरामन लाल कुंभज ने कहा कि '' मां के बारे में बहुत सी बातें आती हैं. पर हम ये सोचते हैं कि इसमें आज शोध करने की जरूरत है क्योंकि वो नारी उत्थान के विषय में काम करने वाली एक महिला थी. जिन्होंने नारियों के सम्मान में अपने पुत्र को भी नहीं छोड़ा और उसे मौत के घाट उतार दिया. उनका बेटा भी मातृ प्रेम की एक मिसाल था. जिसने अपने मां के सम्मान के लिए कदम उठाए.

ग्रामीणों ने उठाया बीड़ा:ग्रामीण चुरामन लाल कुंभज ने बताया कि '' स्थानीय लोगों ने इसकी सुरक्षा संरक्षण का जिम्मा उठाया है. देवी स्थलों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है. अब तो मंदिर का भी निर्माण किया गया है उन्होंने कहा कि लगातार हम इस क्षेत्र को संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं. क्षेत्र महापाषाण स्मारकों से घिरा हुआ है. कई जगहों पर तो पत्थर भी चोरी हो रहे हैं.''


क्या है मां कलारिन से जुड़ा किस्सा : छत्तीसगढ़ में कलचुरी शासन ख़त्म हो रहा था. कई गांव के लोग अपने रहने खाने के व्यवस्था के साथ अपनी जगह बदलने के लिए मजबूर थे. उन्ही में से एक थे गौटिया सुबेलाल कलार. जिनकी मदिरा की दुकान थी. हालांकि राजाओं के शेष काल अब भी बचे हुए थे.सुबेलाल गौटिया की बनाई शराब दूर दूर से लोग लेने और पीने आते थे. सुबेलाल की छोटे भाई की बेटी कलावती ही उनके पास मात्र परिवार के नाम पर थी .कलावती के पास चाचा सुबेलाल को छोड़कर कोई नहीं था.

सुबेलाल के साथ मदिरा दुकान में कलावती सहयोग करते हुए बड़ी हुई. यौवन ने कदम रखा तो कलावती पर कई मनचलों की नजरें रहती. कलावती इनसे दो दो हाथ करने में नहीं घबराती थी. सुबेलाल ने कलावती को खेल-खिलौनों से दूर रखते हुए लाठी, कटार और तलवार चलाना सिखाने लगा.कलावती को सुबेलाल सौन्दर्य के आलावा वह शौर्य कला में भी पारंगत करना चाहता था. आंखें मृगनयनी के सामान थे, क्रोध में चेहरा चंडी के सामान हो जाता था. एक झलक पाने के लिए कई राजा और राजकुमार वेश बदलकर शराब खरीदने सुबेलाल की दुकान में आते थे. लेकिन कलावती के स्वाभिमान व्यवहार से वापस लौट जाते थे.

राजाओं के आते थे प्रेम प्रस्ताव : सुबेलाल की मृत्यु के बाद मदिरा की दुकान चलाती कलावती को बहुत सारे राजाओं के प्रेम प्रस्ताव आए.कुछ समय बाद वे एक राजा के अथाह प्रेम में पड़ गईं जिनसे उन्हें एक पुत्र भी हुआ.राजा ने कलावती से छल किया और कलावती को अकेला छोड़ गया. जीवन के इस स्थिति में अब कलावती अपने पुत्र के साथ जीवन निर्वाह करने लगी. कलावती के बेटे को छल की बात खटकने लगी. वह इसी खटास के साथ बड़ा होने लगा. खटास कब परिवर्तित हुई किसी को खबर तक नहीं हुई.कलावती का बेटा भी राजाओं की बेटियों से शादी करके उन्हें छोड़ देता. उसने कई राजाओं की बेटियों के साथ शादी करके बदले के भाव में उन्हें छोड़ दिया.

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कलारिन ने बेटे की दी बलि :कलावती को जब इस बात का पता चला उन्होंने अपने बेटे को मारने की योजना बनाई क्योंकि उनके बेटे की इस आदत से कई और महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुंचती. कलावती ने सभी लोगों से अपने बेटे को पानी ना देने का आदेश दिया. पानी ना मिलने पर अधमरे हालत में जब वह कुंए के पास पंहुचा तो कलावती ने उसे धकेल कर खुद भी कुंए में जान दे दी. आज कलावती को बहादुर कलारिन के नाम से जाना जाता है. कलावती वो स्त्री थी जिन्होंने पूरी जिंदगी संघर्ष में निकाले. सौंदर्य ,पारंगत होने के बाद भी उनके जीवन में प्रेम ने छल के साथ प्रवेश लिया. जिसका सबसे ज्यादा असर उनके बेटे पर हुआ. अंत में उन्होंने अपनी जिंदगी अपने बेटे के साथ खत्म कर ली. चिरचारी गांव में उनकी स्मारक और मन्दिर में आज भी उनकी पूजा की जाती है.सिर्फ कलार समाज में नहीं बल्कि पूरी अलग जातियों में भी कलारिन बाई सम्मानित की जाती है.


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