बालोद: जिन्होंने भारत को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी. सत्याग्रह किए, आंदोलनों का हिस्सा बने और अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते अपने प्राणों की आहूति दे दी, जिन्हें देश और समाज कभी नहीं भूल सकता ऐसे वीर सपूतों को सरकार ने बिसरा दिया है. उनका परिवार आज भी उचित मान-सम्मान को तरस रहा है. सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं मिल रही है.
जिले के जिन चार आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के कारण गांव का नाम नारागांव पड़ा, उनके परिवार अब शासन की उपेक्षा का शिकार हैं. स्वतंत्रता दिवस पर भी शासन-प्रशासन ने उन्हें याद नहीं किया गया.
शासन-प्रशासन की ओर से नहीं की गई है कोई पहल
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुकालू राम करियाम के पुत्र लेख सिंह ठाकुर ने बताया कि हमारे पूर्वजों की स्मृतियों को सहेजने के लिए हम सब के द्वारा छोटे-छोटे प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन शासन-प्रशासन से अब तक किसी तरह की कोई पहल नहीं की गई है. यहां साल में एक बार शहीद दिवस भी मनाया जाता है जहां हमारे पूर्वजों को याद किया जाता है.
पेंशन नहीं दिया गया
लेख कहते हैं कि हमारे पूर्वज वन सत्याग्रह, जल सत्याग्रह सहित विभिन्न आंदोलनों में शामिल हुए. बड़ा दुख होता है कि हमारे पूर्वजों की स्मृतियां भी प्रशासन की नजर में नहीं आती है. आज तक हमें न पेंशन दिया गया न ही कोई विशेष सम्मान मिला है.