बालोद:रौना के रहने वाले छबिलाल पांडेय का जीवन समाज के लिए प्रेरणा है. छबि लाल पांडेय का निधन 83 साल की उम्र में हो गया, लेकिन उनका जीवन हमेशा समाज के लिए समर्पित रहा. उन्हें गांव के बच्चों से खास लगाव था और वे उनकी शिक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहते थे. यही वजह है कि उन्होंने मरने से पहले अपनी वसीयत की थी, जिसमें अपनी पूरी संपत्ति लगभग 50 लाख रुपए की जमीन उन्होंने गांव के बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए स्कूल को दान कर दी. अब इस स्कूल को छबिलाल पांडेय के नाम पर रखने की मांग यहां के लोग कर रहे हैं. इस मांग को लेकर शाला के प्रधानपाठक प्रवीण लोनहारे, लेखनारायण तिवारी, जिला पंचायत सदस्य छाया, पंकज चौधरी, मनोज साहू और वामन साहू अधिकारियों से मिले और ज्ञापन सौंपा.
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संघर्षों से नहीं मानी हार
छबि लाल पांडेय ने 18 साल तक अपना जीवन मटिया के राममंदिर की सेवा में गुजार दी. बढ़ती उम्र के बाद वे गांव में रहने लगे. पांडेय के साथ उनकी धर्मपत्नी थीं. दोनों की कोई संतान नहीं थी. उनकी पत्नी विमला बाई का 4 साल पहले ही निधन हो चुका है. इसके बाद गांव के ही व्यक्तियों ने उनकी देखभाल की. पांडेय ने अपनी पैतृक संपत्ति लगभग 50 लाख की 4 एकड़ जमीन गांव के ही बच्चों की बेहतर शिक्षा के लिए विद्यालय को दान कर दी.
छबिलाल पांडेय के पिता की मौत बचपन में ही हो चुकी थी. इसके बाद उन्हें मां भी छोड़कर चली गई. उनकी शादी हुई, लेकिन परिवार के लोगों ने पैतृक संपत्ति से दूर रखा. कोर्ट में केस करके उन्होंने अपने हिस्से की जमीन हासिल की.
बच्चों से था लगाव
शादी के बाद छबिलाल पांडेय को संतान का सुख नहीं मिल सका. उन्होंने गांव को ही अपना परिवार मान लिया था. जब गांव और अन्य जगह से वे पूजापाठ करके आते, तो आसपास के बच्चे प्रसाद के लिए दौड़कर उनके पास इकट्ठा हो जाते थे. बच्चों से लगाव की वजह से ही उन्होंने अपनी जमीन उनकी अच्छी शिक्षा के लिए दान कर दी.