बलरामपुर:आजादी के 7 दशक बाद भी खड़िया डामर पंचायत पर आश्रित बचवार गांव में कुछ नहीं बदला. कहते हैं विकास की राह सड़क से होकर गुज़रती है. किसी गांव की सड़क उस गांव के विकास का पैमाना होती है, लेकिन बलरामपुर के इस गांव में सड़क कभी पहुंची ही नहीं. गांव में लोगों और उनके हालातों को देखकर ऐसा लगता है जैसे हुक्मरानों ने इस गांव को अपने विकास के नक्शे से ही गायब कर दिया है. इस गांव में परेशानियों का अंबार है.
बचवार गांव के ग्रामीण सालों से साफ पानी के लिए तरस रहे हैं. यहां के ग्रामीण पिछले कई सालों से सरकार से बोरवेल जैसी सुविधा की मांग कर रहे हैं. लेकिन अब तक मांग पूरी नहीं हुई है. ऐसे में इनके पास नदी के पास के एक कुएं से दूषित पानी पीने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. गांव में बिजली भी नहीं है. ऐसा लगता है मानों सालों से गांव विकास की बांट जोह रहा है.
मूलभूत सुविधाएं ही नहीं
जैसे रोटी, कपड़ा, मकान किसी व्यक्ति का अधिकार है. ठीक उसी तरह बिजली, पानी और सड़क भी गांव की मूलभूत सविधाओं में गिने जाते हैं. विकासखंड मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर बसे बचवार में ये तीनों ही सुविधाएं नहीं है. गांव तक पहुंचने के लिए सड़क का नामों निशान नहीं है. नदी पार करके गांव तक पहुंचना पड़ता है. इसके अलावा बरसात के दिनों में तो गांव का संपर्क महीनों के लिए मुख्यालय से टूट जाता है.
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पहाड़ी का दुर्गम रास्ता
बता दें गांव की अधिकांश लोग आदिम जनजाति के हैं. आज भी यहां आवागमन के लिए कोई रास्ता नहीं है. गांव के लोगों को अपने जीवन यापन के रोजमर्रा सम्मान के लिए पैदल 25 किलोमीटर पहाड़ी रास्तों से चलकर बलरामपुर जाना पड़ता है. जबकि रास्ते में दो बड़ी नदियां पड़ती हैं. गांव के लोगों को शासकीय उचित मूल्य दुकान से अन्य सामग्री लेकर 25 किलोमीटर दुर्गम सफर पहाड़ी के रास्तों पर पगडंडी के सहारे तय करना पड़ता है. 30 से 50 किलोग्राम वजन को कंधों पर लादकर चलना पड़ता है.