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SPECIAL: आजादी के 7 दशक बाद भी बचवार में नहीं पहुंचा विकास , मूलभूत सुविधाओं के तरस रहे ग्रामीण - शिक्षा का स्तर खराब

बलरामपुर के बचवार गांव के ग्रामीण सालों से साफ पानी के लिए तरस रहे हैं. यहां मूलभूत सुविधाएं ही नहीं है. सड़क के अभाव में ग्रामीण पहाड़ी का दुर्गम रास्ता अपनाने को मजबूर हैं. शिक्षा का स्तर खराब है. साथ ही स्वास्थ्य सेवा का अभाव है.

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आजादी के 7 दशक बाद भी बचवार में नहीं पहुंचा विकास

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Published : Oct 1, 2020, 10:52 PM IST

बलरामपुर:आजादी के 7 दशक बाद भी खड़िया डामर पंचायत पर आश्रित बचवार गांव में कुछ नहीं बदला. कहते हैं विकास की राह सड़क से होकर गुज़रती है. किसी गांव की सड़क उस गांव के विकास का पैमाना होती है, लेकिन बलरामपुर के इस गांव में सड़क कभी पहुंची ही नहीं. गांव में लोगों और उनके हालातों को देखकर ऐसा लगता है जैसे हुक्मरानों ने इस गांव को अपने विकास के नक्शे से ही गायब कर दिया है. इस गांव में परेशानियों का अंबार है.

आजादी के 7 दशक बाद भी बचवार में नहीं पहुंचा विकास

बचवार गांव के ग्रामीण सालों से साफ पानी के लिए तरस रहे हैं. यहां के ग्रामीण पिछले कई सालों से सरकार से बोरवेल जैसी सुविधा की मांग कर रहे हैं. लेकिन अब तक मांग पूरी नहीं हुई है. ऐसे में इनके पास नदी के पास के एक कुएं से दूषित पानी पीने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. गांव में बिजली भी नहीं है. ऐसा लगता है मानों सालों से गांव विकास की बांट जोह रहा है.

मूलभूत सुविधाएं ही नहीं

जैसे रोटी, कपड़ा, मकान किसी व्यक्ति का अधिकार है. ठीक उसी तरह बिजली, पानी और सड़क भी गांव की मूलभूत सविधाओं में गिने जाते हैं. विकासखंड मुख्यालय से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर बसे बचवार में ये तीनों ही सुविधाएं नहीं है. गांव तक पहुंचने के लिए सड़क का नामों निशान नहीं है. नदी पार करके गांव तक पहुंचना पड़ता है. इसके अलावा बरसात के दिनों में तो गांव का संपर्क महीनों के लिए मुख्यालय से टूट जाता है.

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पहाड़ी का दुर्गम रास्ता

बता दें गांव की अधिकांश लोग आदिम जनजाति के हैं. आज भी यहां आवागमन के लिए कोई रास्ता नहीं है. गांव के लोगों को अपने जीवन यापन के रोजमर्रा सम्मान के लिए पैदल 25 किलोमीटर पहाड़ी रास्तों से चलकर बलरामपुर जाना पड़ता है. जबकि रास्ते में दो बड़ी नदियां पड़ती हैं. गांव के लोगों को शासकीय उचित मूल्य दुकान से अन्य सामग्री लेकर 25 किलोमीटर दुर्गम सफर पहाड़ी के रास्तों पर पगडंडी के सहारे तय करना पड़ता है. 30 से 50 किलोग्राम वजन को कंधों पर लादकर चलना पड़ता है.

स्वास्थ्य पर पड़ रहा असर

साफ पानी की व्यवस्था न होने के कारण ग्रामीण ढोड़ी (झिरिया) का पानी पीकर जीवन यापन कर रहे हैं. बरसात के दिनों में नदियों से बहते गंदे पानी को पीना पड़ता है. ऐसे में ग्रामीण हमेशा अपने स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहते हैं. उनके स्वास्थ्य पर इसका प्रभाव पड़ रहा है.

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शिक्षा का स्तर खराब

गांव में स्थित स्कूल में शिक्षक हफ्ते में सिर्फ 1 से 2 दिन ही पढ़ाने जाते हैं. ऐसे में शिक्षा का स्तर बहुत ही दयनीय है. बता दें टीचरों को भी ग्रामीणों की तरह कठिन रास्ता तय करना पड़ता है. लगभग 15 किलोमीटर का रास्ता बेहद खराब है. ऐसे में शिक्षक रोज स्कूल नहीं पहुंच पाते हैं.

स्वास्थ्य सेवा का अभाव

बता दें कि गांव में लोग बीमार पड़ने पर स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर जंगली जड़ी-बूटी और झाड़-फूंक का सहारा लेने को मजबूर हैं. अत्यंत गंभीर अवस्था में लोग मरीज को कंधे पर उठाकर या फिर खटोला पर लाद कर लगभग 25 किलोमीटर दूर अस्पताल ले जाते हैं. प्रदेश में शुरुआती 3 साल कांग्रेस, फिर 15 बीजेपी और अब दोबारा कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार सत्ता में है. लेकिन इन ग्रामीणों की समस्या का हल नहीं हो सकी है. ऐसे में देखना होगा की आखिर कब इन ग्रामीणों को इनकी मूलभूत सुविधा मिल पाती है.

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