बलरामपुर: नदी उफान पर है, पानी अपने रफ्तार के साथ बह रहा है, इंसान उफनती नदी को पार करने को मजबूर है. विधायक, मंत्री और तमाम जनप्रतिनिधि चुनाव खत्म होते ही अपने-अपने घर को लौट चुके हैं. अब इस विकास के लिए ग्रामीणों को अगले चुनाव का इंतजार करना होगा. राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले ये पहाड़ी कोरवा आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं. वहीं पांच साल में एक बार दिखने वाले इनके हमदर्द फिलहाल अपनी गुफा में चीरनिंद्रा में आराम फरमा रहे हैं और ये वर्षों की तरह इस साल भी पुल की आस लिए नदी पार कर रहे हैं.
नदी पार करने के लिए पुल नहीं जिला मुख्यालय से महज 20 किमी दूर स्थित है चिलमा गांव, जो मुख्य मार्ग से महज कुछ ही दूरी पर बसा है. वैसे तो ये गांव मुख्य मार्ग पर बसा है, लेकिन यहां जाना काफी मुश्किलों भरा है, क्योंकि इसगांव में जाने के लिए न सड़कें है, न नदी पार करने के लिए पुल. बारिश के दिनों में लोग पैदल चलकर नदी पार करते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि कई बार वे नदी पार करते वक्त बह भी गए हैं, लेकिन उनके सामने कोई और चारा नहीं है.
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ग्रामीण कहते हैं, कहीं भी जाना हो उन्हें उफनती नदी को पार करना पड़ता है. वे अपना सारा सामान कंधे पर ढोकर नदी को पार करते हैं. ग्रामीणों की ये समस्या काफी सालों से बनी हुई है, लेकिन इनकी समस्या पर किसी की भी नजर नहीं गई. इनतक पहुंचने वाली योजनाएं भी नदी के कारण उस पार ही रुक जाती है. ग्रामीणों की परेशानी को देखते हुए डीएफओ ने यहां ग्रामीणों के लिए दो डोंगा की व्यवस्था की है, लेकिन ग्रामीण उसका इस्तेमाल करने से डरते हैं. महिलाओं के लिए वो कुछ हद तक फायदेमंद है. ग्रामीण लगातार सरकार से पुल की मांग कर रहे हैं.
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गांव के एक शिक्षक बताते हैं, वे स्कूल जाने के लिए बच्चो को कंधे पर बिठाकर नदी पार कराते हैं और सप्ताह में कुछ ही दिन स्कूल जा पाते हैं. गांव के कुछ और लोग बताते हैं, इलाज के अभाव में कई ग्रामीणों की मौत हो चुकी है. सड़क नहीं होने से एंबुलेंस गांव तक आ नहीं पाती इसके कारण कई लोगों ने असमय ही अपनी जान गंवा देते हैं. ये समस्या दशकों से बनी है, लेकिन आज तक किसी जिम्मेदार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया.