सरगुजा: भारत की संस्कृति और सभ्यता के साथ धर्म और आस्था में प्राकृतिक का एक अलग ही महत्व है. लिहाजा कई बार ये सवाल भी उठते रहते हैं कि धर्म के चक्कर में लोग पर्यावरण से खिलवाड़ कर रहे हैं. जिसपर लोग अब इसका विकल्प तलाश रहे हैं. पर्यावरण के साथ धर्म और आस्था के संरक्षण को लेकर अंबिकापुर शहर की दो महिलाएं इन दिनों मिसाल पेश कर रही हैं. ये महिलाएं इको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियां घरों में बना रही हैं, जिससे पर्यावरण संरक्षण के साथ आस्था और धर्म को भी कोई नुकसान न पहुंचे.
गणेश उत्सव की धूम के साथ अब कुछ प्रेरणादायक प्रयास भी इस उत्सव से जुड़ने लगे हैं. लोग अब हर धार्मिक उत्सव में यह वजह खोजना शुरू कर चुके हैं कि हमारा उत्सव हमारी ही आने वाली पीढ़ी के लिए अभिशाप न बन जाए. लिहाजा, गणेश पूजन के लिए अब ऐसी मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है, जो पर्यावरण की रक्षक साबित हों. बता दें, सिरेमिक की मूर्तियां नदियों में गलती नही हैं, जिसके चलते भारी जल प्रदूषण होता है. साथ ही उसमें उपयोग किए जाने वाले केमिकल युक्त रंग मछलियों सहित अन्य जलीय जीवों की जिंदगी के लिए घातक साबित होते हैं. लिहाजा अब ऐसी मूर्तियों को चलन में लाने का प्रयास हो रहा है, जिससे न सिर्फ पर्यावरण सुरक्षित हो बल्कि हम धर्म के माध्यम से प्रकृति की भी सेवा कर सकें.
पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहीं ये दो महिलाएं
धर्म के साथ पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा उठाया है शहर के दत्ता कालोनी में रहने वाली महिला अर्जिता सिन्हा और भट्ठा पारा में रहने वाली शिल्पी सारथी ने. इन्होंने न सिर्फ मिट्टी की मूर्तियां बनाई है बल्कि उन्हें रंगने के लिए ऑर्गेनिक रंगों का भी प्रयोग कर रही हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि ये महिलाएं गणेश भगवान की ये इको-फ्रेंडली मूर्तियां लोगों को निःशुल्क उपलब्ध करा रही हैं. ताकि लोग इको-फ्रेंडली मूर्तियों के प्रति रूचि दिखाएं और पर्यावरण संरक्षण में सहभागी बने.
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