छत्तीसगढ़

chhattisgarh

ETV Bharat / state

सरगुजा: आस्था के साथ पर्यावरण संरक्षण का संदेश, दो महिलाएं बना रहीं इको-फ्रेंडली गणेश - अंबिकापुर गणेश

कोरोना काल ने लोगों के जीवन में बड़ा परिवर्तन लाया है, जिसका प्रभाव अब गणेश उत्सव में भी देखने को मिल रहा है. महामारी के चलते कई लोग बाहर से गणेश प्रतिमा खरीदने से बच रहे हैं. साथ ही हर साल सिरेमिक की मूर्तियों से जल प्रदूषण भी होता है जिसे देखते हुए अब लोग जागरुक होने लगे हैं. शहर की दो महिलाएं इको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियां घरों में बना रही है जिससे पर्यावरण संरक्षण में मदद मिल सके.

eco friendly ganesh idol
इको-फ्रेंडली गणेश की मूर्ती

By

Published : Aug 23, 2020, 10:36 AM IST

Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

सरगुजा: भारत की संस्कृति और सभ्यता के साथ धर्म और आस्था में प्राकृतिक का एक अलग ही महत्व है. लिहाजा कई बार ये सवाल भी उठते रहते हैं कि धर्म के चक्कर में लोग पर्यावरण से खिलवाड़ कर रहे हैं. जिसपर लोग अब इसका विकल्प तलाश रहे हैं. पर्यावरण के साथ धर्म और आस्था के संरक्षण को लेकर अंबिकापुर शहर की दो महिलाएं इन दिनों मिसाल पेश कर रही हैं. ये महिलाएं इको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियां घरों में बना रही हैं, जिससे पर्यावरण संरक्षण के साथ आस्था और धर्म को भी कोई नुकसान न पहुंचे.

महिलाएं बना रहीं इको-फ्रेंडली गणेश की मूर्तियां

गणेश उत्सव की धूम के साथ अब कुछ प्रेरणादायक प्रयास भी इस उत्सव से जुड़ने लगे हैं. लोग अब हर धार्मिक उत्सव में यह वजह खोजना शुरू कर चुके हैं कि हमारा उत्सव हमारी ही आने वाली पीढ़ी के लिए अभिशाप न बन जाए. लिहाजा, गणेश पूजन के लिए अब ऐसी मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है, जो पर्यावरण की रक्षक साबित हों. बता दें, सिरेमिक की मूर्तियां नदियों में गलती नही हैं, जिसके चलते भारी जल प्रदूषण होता है. साथ ही उसमें उपयोग किए जाने वाले केमिकल युक्त रंग मछलियों सहित अन्य जलीय जीवों की जिंदगी के लिए घातक साबित होते हैं. लिहाजा अब ऐसी मूर्तियों को चलन में लाने का प्रयास हो रहा है, जिससे न सिर्फ पर्यावरण सुरक्षित हो बल्कि हम धर्म के माध्यम से प्रकृति की भी सेवा कर सकें.

पर्यावरण संरक्षण का संदेश दे रहीं ये दो महिलाएं

धर्म के साथ पर्यावरण संरक्षण का बीड़ा उठाया है शहर के दत्ता कालोनी में रहने वाली महिला अर्जिता सिन्हा और भट्ठा पारा में रहने वाली शिल्पी सारथी ने. इन्होंने न सिर्फ मिट्टी की मूर्तियां बनाई है बल्कि उन्हें रंगने के लिए ऑर्गेनिक रंगों का भी प्रयोग कर रही हैं. सबसे बड़ी बात तो यह है कि ये महिलाएं गणेश भगवान की ये इको-फ्रेंडली मूर्तियां लोगों को निःशुल्क उपलब्ध करा रही हैं. ताकि लोग इको-फ्रेंडली मूर्तियों के प्रति रूचि दिखाएं और पर्यावरण संरक्षण में सहभागी बने.

पढ़ें- राजनांदगांव: लोकमान्य तिलक के आह्वान पर विराजे गणपति, वर्षों पुराना है बप्पा का इतिहास

अर्जिता पिछले 8 सालों से बना रही इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमाएं

दरअसल, शहर के दत्ता कालोनी निवासी अर्जिता सिन्हा पिछले 8 सालों से इस अभियान का संचालन खुद ही कर रही हैं. उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिए मिट्टी और गंगाजल से गणेश भगवान की छोटी-छोटी मूर्तियों को बनाने का अभियान शुरू किया और एक मूर्तिकार के रूप में आकर्षक मूर्तियां बना रही हैं. वे लोगों को मिट्टी की मूर्तियां बनाने का प्रशिक्षण भी देती हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि वो लोगों को यह मूर्तियां निःशुल्क उपलब्ध भी कराती है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इको फ्रेंडली मूर्तियों की स्थापना करें. इस साल वे अब तक 50 लोगों को निःशुल्क मूर्तियां उपलब्ध करा चुकी हैं. अर्जिता सिन्हा बताती हैं, इंसान पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर रहा है और इन छोटे-छोटे प्रयासों के माध्यम से ही हम पर्यावरण का संरक्षण कर सकते हैं.

घर बैठे किया अपनी कला का सही इस्तेमाल

वहीं शिल्पी सारथी जो दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रही थीं, लेकिन लॉकडाउन में फिलहाल वो अपने घर अंबिकापुर में हैं, लिहाजा उन्होंने अपनी कला का सही इस्तेमाल करते हुऐ, घर बैठे इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा बनाना शुरू किया और अपने जानने वाले लोगों को यह प्रतिमाएं दी. लोगों ने सहर्ष इसे स्वीकार कर अपने घरों में इन्ही मूर्तियों की स्थापना कर पूजन शुरू किया.

मिट्टी में डालती है पौधों के बीज

शिल्पी सारथी न सिर्फ मिट्टी की मूर्तियां बनाती हैं बल्कि पर्यावरण की रक्षा की सबसे अहम चीज पेड़-पौधों को भी बढ़ावा देती हैं. इसके लिए वह मूर्तियों में निर्माण के दौरान उनमें पेड़ व पौधों के बीज डालती है. विसर्जन के बाद मिट्टी में डाला गया बीज भविष्य में पौधे का स्वरुप लेगा जो पर्यावरण संरक्षण में अहम रोल निभाएगा.

Last Updated : Jul 25, 2023, 8:01 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details