सरगुजा: तिब्बती समुदाय के प्रधानमंत्री पेम्पा सेरिंग आज सरगुजा जिले के मैनपाट पहुंचे. तिब्बती संसद के निर्वाचन के बाद बने नये प्रधानमंत्री पहली बार मैनपाट आये हैं. वे मुख्य रूप से कोरोना काल में प्रभावित समुदाय के लोगों से मुलाकात और उनका हालचाल जानने के उद्देश्य से आये हैं.
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तिब्बती समाज के लोगों में खासा उत्साह:कोई तिब्बती पीएम 60 वर्षों बाद मैनपाट आये हैं. ऐसे में मैनपाट में रहने वाले तिब्बती समाज के लोगों में खासा उत्साह है. भारत ने देश भर में तिब्बती लोगों को शरण दी थी. तभी से मैनपाट में भी तिब्बतियों को बसाया गया. शरणार्थी बनकर आये तिब्बती अपने सरल आचरण के कारण देश और सरगुजा की संस्कृति से इतना घुल-मिल गये कि यहां तिब्बती और भारतीयों में कोई खास भेद नहीं दिखता.
बता दें कि पिछले साल मई महीने में पेंपा सेरिंग निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रधानमंत्री चुने गए थे. पेंपा सेरिंग ने केलसंग दोरजे 5441 वोट से हराया था. पेंपा सेरिंग को धर्मगुरु दलाईलामा का करीबी माना जाता है. निर्वासित तिब्बत सरकार (केंद्रीय तिब्बती प्रशासन) के चुनाव आयोग की देखरेख में विश्व के अलग-अलग देशों में रहने वाले तिब्बती शरणार्थियों ने मतदान में हिस्सा लिया था. पेंपा सेरिंग का जन्म कर्नाटक में शरणार्थी सेटलमेंट कैंप में हुआ था. वे निर्वासित तिब्बत संसद में दो बार अध्यक्ष रह चुके हैं.
तिब्बती प्रधानमंत्री पेम्पा सेरिंग ने क्या कहा:तिब्बती प्रधानमंत्री पेम्पा सेरिंग ने कहा कि हमारी पैदाइश भारत में हुई. हम दिखने में तिब्बती है लेकिन मन से भारतीय है. हमारी भाषा, संस्कृति, धर्म भारत से है ना की चीन से. हम लोग ऐसा मानते है कि हम भारत के का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे तिब्बत में प्रिजर्व कर रखा है. तिब्बत समुदाय का भारत गुरु है. गुरू लामा जो भी पढ़ाई कर रहे है वह भारत की देन है. हम यहां निर्वासित होते हुए भी अलग महसूस नहीं करते है. क्योंकि हमारी सोच एक है और धर्म भी यही से आया है. बस दिखने में थोड़ा अलग है.
उन्होंने कहा कि हम भारत सरकार, राज्य सरकार के आभारी है. जिन्होंने हमारी मदद की. भारत सरकार की मदद के बिना हम उतना विकास नहीं कर पाते. निर्वासित होते हुए भी हम दूसरों के लिए उदाहरण है कि हमारी खुद की सरकार है. अपना संसद, निर्वाचन आयोग सहित सभी लोकतंत्र मौजूद है.
उन्होंने कहा कि भारतीय लोग मानते है कि तिब्बत को आजादी मिलनी चाहिए फिर भी सरकार की तरफ से निति होनी चाहिए. यह थोड़ा मुश्किल है. क्योंकि केंद्र में कोई भी सरकार रहे, लेकिन परिस्थितयों को देखना पड़ता है. वर्तमान में यूक्रेन को लेकर जो स्थिति निर्मित हुई है.उसका भी असर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने तिब्बत पुनर्वास निति को 2014 में लागू किया गया था. हर राज्य में निर्वासित तिब्बती को लाभ दिलाने की पॉलिसी थी. लेकिन स्टेट में यह पॉलिसी साफ नहीं हुई है. हम केंद्र से मीटिंग उसके बाद सेंट्रल से कोई निर्देश आ सकते है.