सरगुज़ा : ट्रेडिशनल गोदना आर्ट अब विलुप्ति की (Tattooing art of Surguja ) ओर है. लेकिन ये कला अब नए रूप में प्रचलित हो चुकी है. गोदना का ही आधुनिक (Use of tattoo art in clothing fashion) रूप टैटू के रूप में प्रचलित है. लेकिन सरगुज़ा के ट्रेडिशनल गोदना डिजाइन को संजोने का काम अब नई पीढ़ी कर रही है और कपड़ो में वही वर्षों पुरानी डिजाइन बना रही हैं. बड़ी बात यह है कि, कपड़ो पर गोदना आर्ट बनने के बाद बेहद पसंद भी किया जाता है और दिल्ली हाट में गोदना आर्ट के कपड़ों की अच्छी डिमांड है.
गोदना आर्ट की विरासत हो रही लुप्त शरीर पर आभूषण की जगह गोदना आर्ट का प्रचलन:वर्षों से सरगुज़ा की ग्रामीण महिलाएं पूरे शरीर मे गोदना गोदवाती थी. आभूषण की डिजाइन का गोदना महिलाओं के शरीर पर बनाया जाता था, गले का हार, पायल, करधन जैसे तमाम आभूषण शरीर पर गोद गोद कर छाप दिये जाते थे. लेकिन यह प्रक्रिया बेहद जटिल और शरीर को कष्ट देने वाली थी. इसके कई साइड इफेक्ट भी देखे गए. जिस कारण धीरे-धीरे ये चलन से बाहर होने लगा. महिलाएं और युवतियां गोदना गोदवाने स बचने लगी और अब सरगुज़ा के गांव में कुछ महिलाओं के शरीर पर गोदना के निशान मिलते हैं.
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टैटू ने ली गोदना आर्ट की जगह : ऐसे में बाजार में नये फैशन के रूप में टैटू ने जगह बना ली है. टैटू बनवाना ना तो उतना कष्ट दायक है और ना ही इसके दुष्परिणाम सामने आये लेकिन आधुनिक टैटू में पारंपरिक डिजाइन विलुप्त हो चुकी थी, लिहाजा एक बार फिर इस कला को जीवित रखने का प्रयास किया गया. लोगों के शरीर पर इस कला को आगे बढ़ाना सम्भव नही था, लिहाजा अब गोदना आर्ट महिलाओं के कपड़ो की सुंदरता बढ़ा रहा है. मुख्य रूप से चादर, पर्दे, दुपट्टा, सलवार सूट, रुमाल, पेंटिंग में गोदना आर्ट का उपयोग किया जा रहा है. इस प्रयास के बाद से नई पीढ़ी की युवतियों में भी गोदना आर्ट के प्रति जागरूकता देखी जा रही है. वो जन शिक्षण संस्थान में गोदना आर्ट का प्रशिक्षण ले रही हैं और अपनी परंपरा को जीवित रखते हुए अपना जीवन भी समृद्ध बनाने का प्रयास कर रही हैं.
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गोदना आर्ट महाभारत काल की कला : गोदना आर्ट की ट्रेनर बताती हैं की उनके दादा-दादी भी अपने पूर्वजों के शरीर मे गोदना देखते थे. मतलब प्रमाणित रूप से यह कला 150 साल से भी अधिक पुरानी है, जबकी घर मे बुजुर्गों से सुने किस्सों के आधार पर उनका कहना है कि, गोदना महाभारत काल से प्रचलित है, पहली बार भगवान कृष्ण ने राधा के शरीर पर गोदना बनाया था तब से ये परंपरा चली आ रही है. बहरहाल गोदना का इतिहास चाहे जो भी हो लेकिन फिलहाल गोदना का भविष्य अब नई युवा पीढी के हाथों में है जो इस विरासत को नये रूप में आगे बढ़ाने के लिये प्रयासरत है. अब इस कला में पारंगत होकर कितने युवा पश्चिमी फैशन डिजाइनिंग को चुनौती दे पाते हैं ये देखना होगा.