सरगुजा: किसी ने सच कहा है, तकदीर तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते... ये लाइन सरगुजा के डिगमा गांव के रहने वाले महेश पर सटीक बैठती है. आदिवासी समाज के इस बच्चे ने साबित कर दिखाया है कि किस्मत से बढ़कर हिम्मत होती है. महेश के दोनों हाथ नहीं हैं, फिर भी वो पढ़ाई करता है. इस साल महेश 12वीं बोर्ड की परीक्षा अपने पैर से लिखकर दे रहा है. महेश के जज्बे की हर कोई तारीफ कर रहा है.
शिक्षकों ने की मदद: अम्बिकापुर से 10 किलोमीटर दूर डिगमा गांव के गरीब किसान के घर एक ऐसे बच्चे ने जन्म लिया, जिसके दोनों हाथ नहीं थे. लेकिन मां ने उसे स्कूल भेजा. स्कूल के शिक्षकों ने भी हिम्मत दिखाई और उस बच्चे को दाखिला भी दे दिया. कक्षा 1 से 8 तक महेश डिगमा के स्कूल में पढ़ा और फिर 9वीं से 12वीं तक पास के गांव भगवानपुर में शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल से पढ़ाई की.
पैरों की उंगली से लिख रहा अपना भविष्य:इन 12 वर्षों में महेश के अंदर एक अद्भुत कला ने जन्म लिया. वो हाथ न होने के कारण पैर की उंगलियों में पेन फंसाकर लिखता था. महेश इस हुनर में इतना माहिर हो गया कि आज वो 12वीं कक्षा में है. अब तो अपने उन्हीं पैरों की उंगलियों से 12वीं बोर्ड की परीक्षा में लिख रहा है. महेश के पिता नही हैं, बूढ़ी मां ही उसकी देखभाल करती है. नित्य क्रिया का काम भी महेश खुद से नहीं कर पाता. ऐसे में जिंदगी उसके लिये आसान नहीं थी. लेकिन महेश के एक शिक्षक सर्वजीत पाठक ने निश्चय कर लिया है कि वो महेश के जीवन को बेहतर बनाने का पूरा प्रयास करेंगे.
नौकरी करना चाहता है महेश:महेश कहता है कि मुझे स्कूल के टीचरों का बहुत सहयोग मिला.अच्छा लग रहा है कि 12 वीं की परीक्षा दे रहा हूं. बस 12वीं पास हो जाऊं तो सरकार से यही उम्मीद है कि कोई काम मिल जाये क्योंकि पिता नहीं हैं और मां बूढ़ी हो चुकी है. अगर नौकरी मिल जाएगी तो जीवन आसान हो जाएगा.